प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सक्रियता : चीन और पाकिस्तान परेशान

Sudhendu Ojha Political Analyst (This piece first appeared in Panchajanya, Daily News Activist, Janasandesh Times, Daily Aaj and many online news portals)

भारतीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बढ़ती हुई सक्रियता से देश के अंदर मौजूद उनके प्रतिपक्षी तो परेशान हैं ही चीन और पाकिस्तान के नेताओं को भी अब जी को हलकान करने वाले तरह-तरह के आष्टांग योगासन करने को मजबूर होना पड़ रहा है। चीन से बहुत ही रोचक खबर आ रही है। एनएसजी मुद्दे पर भारत विरोध का ठीकरा चीन अब अपने एक उच्चस्तरीय अधिकारी के सिर फोड़ रहा है।

अमरीकी धमकी :

जिस दिन से अमरीका के राजनैतिक मामलों के अंडर सेक्रेटरी टॉम शेन्नों ने एनएसजी में भारत के प्रवेश को अमरीकी इच्छा के रूप में जाहिर किया और एनएसजी में भारत की सदस्यता को अमरीका की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया, चीन की भारत विरोधी बयान की नीति में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है। श्री शेन्नों ने न केवल भारतीय सदस्यता का पक्ष लिया बल्कि अप्रत्याशित रूप से यहाँ तक कह दिया कि जिस भी किसी देश ने इस समूह में भारतीय सदस्यता का विरोध किया है उसे इसके लिए जवाबदेही लेनी पड़ेगी।

अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक गलियारों में इस भाषा का बहुत बड़ा महत्व है। श्री शेन्नों ने ज़ोर देकर कहा कि अमरीका इस समूह में भारत की सदस्यता के लिए प्रतिबद्ध है। ऐसा सिओल में हो जाना चाहिए था, किन्तु ऐसा नहीं हुआ जिसकेलिए अमरीका को खेद है। उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि चीन की व्यवस्था (विस्तारवादी नीति का) करना एक चुनौती भरा कार्य है किन्तु अमरीका भारत के साथ मिल कर हिन्द महासागर और एशिया-पैसिफिक में ऐसा कर पाने में सफल रहेगा। दक्षिणी चीन सागर में चीन की गतिविधियों को उन्होंने ‘चीन का पागलपन’ तक कह दिया। उन्होंने विश्व समुदाय को साफ शब्दों में कहा कि अमरीका भारत को हर अंतर्राष्ट्रीय महत्व प्राप्त संगठन का सदस्य देखना चाहता है। श्री शेन्नों ने स्पष्ट किया कि चीन, दक्षिणी चीन सागर में अपना दब-दबा बना कर हिन्द महासागर क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है। अमरीका इस क्षेत्र (दक्षिणी चीन सागर) में उसके व्यवहार पर निगाह रखे हुए है, यही कारण है कि अमरीका इस इलाके में भारत को प्राकृतिक सामरिक शक्ति के रूप में देखता है। और यही कारण है कि एडमिरल हैरी हैरिस ने हाल ही में भारत की यात्रा की और अमरीका-भारत दोनों देशों ने मिल कर हिन्द महासागर में संयुक्त अभ्यास किया।

29 मई 2016 को दिए गए उनके इस वक्तव्य का चीन पर तत्काल असर देखा गया। चीनी विदेश मंत्रालय के अधिकारी हाँग ली ने आधिकारिक मीडिया ब्रीफिंग में श्री शेन्नों की दक्षिण चीन सागर संबन्धित टिप्पणी पर चीन की असहजता को जाहिर किया। और कहा कि श्री शेन्नों की टिप्पणी इस क्षेत्र के पड़ोसी देशों के बीच दरार डालने के उद्देश्य से की गई है। उन्होंने अमरीका से यह भी आग्रह किया कि वह दक्षिणी चीन सागर विवाद में किसी भी पक्ष की तरफदारी से बचे।

एमटीसीआर में भारत की सदस्यता से चीन को संदेश :

श्री शेन्नों ने चीन को लेकर जो बातें कहीं उनका दूरगामी परिणाम तय है, चीन कुछ समय केलिए एनएसजी समूह में भारत के प्रवेश को टालने में तो कामयाब रहा किन्तु मिसाइल टेक्नोलोजी रेजीम (एमटीसीआर) में वर्ष 2004 से लंबित उसके आवेदन को एक बार पुनः रद्द करते हुए भारत को इस समूह में 35वें सदस्य के रूप में निमंत्रित कर अमरीकी पक्ष ने स्पष्ट कर दिया कि इस समूह में प्रवेश केलिए अब भविष्य में चीन और पाकिस्तान को भारतीय स्वीकृति के दरवाजे पर सिर झुकाने के बाद ही सदस्यता मिल पाएगी।

इस बदलते समीकरण में चीन अपने भारत विरोध की कट्टरता को छुपाने के बहाने तलाशता नज़र आ रहा है। एनएसजी प्रकरण में पूरे भारत विरोधी अभियान में चीन के शस्त्र नियंत्रण डिवीज़न के महा निदेशक वांगकुन से चीनी सरकार ने अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की है। ऐसी रिपोर्ट है कि वांगकुन ने चीनी सरकार को आश्वस्त किया था कि वह समूह के 48 सदस्यों में से एक तिहाई, अर्थात 16-17 देशों को भारत की सदस्यता के विरोध में तैयार कर लेगा, किन्तु इसके विपरीत 44 सदस्य देश भारत को प्रवेश दिए जाने के पक्ष में आगए। चीन के साथ तीन देश ही रहे। भारत विरोधी मुहिम में चीन इतना आगे निकल गया था कि पीछे आने में अंतर्राष्ट्रीय छीछालेदार से बचने केलिए उसके पास कोई बहाना नहीं बचा था।

चीन को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में भारत से भय :

वर्तमान स्थितियों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के समुद्री परंपरागत नियमों के तहत, जिस पर चीन ने भी हस्ताक्षर किए हुए हैं एक मामला फिलीपींस ने चीन के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में डाला हुआ है। यह मामला चीन द्वारा दक्षिणी चीन सागर के धुर दक्षिण में उसके द्वारा एक द्वीप को बनाए जाने को लेकर है। चीन इस क्षेत्र में सागर से रेत का खनन कर एक टापू का निर्माण कर रहा है। इस टापू में वह हवाई पट्टी के साथ सैनिक केंद्र की स्थापना करने जा रहा है। संभावना है कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय चीन के विरुद्ध रहेगा ऐसे में भारत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय को लागू करवाने में आगे आसकता है। इस निर्णय के तहत चीन को यह भू-भाग फिलीपींस को देना पड़ सकता है। चीन ने पिछले कई वर्षों से इंटेलिजेंसिया में प्रचार कर यह माहौल बनाने का प्रयास किया हुआ है कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का प्रस्तावित निर्णय अवैधानिक है।

पाकिस्तान में घमासान :

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में टेलेविजन साक्षात्कार में पाकिस्तान के विषय में यह कह दिया कि भारत को समझ नहीं आता वहाँ बात किस से करे। चुनी हुई सरकार से या फिर किसी अन्य से, वहाँ शक्ति के कई केंद्र हैं। उनके इस वक्तव्य से पाकिस्तान की राजनीति में भी घमासान मचा हुआ है।

प्रतिष्ठित पत्रकार नज़म सेठी ने फ्राईडे टाइम्स में लिखते हुए कहा है कि मोदी का इशारा पाकिस्तानी सेना की तरफ है। उनका कहना है कि इस वक्तव्य के दो अर्थ लिए जाने चाहिए। पहला तो यह कि नवाज़ शरीफ की चुनी हुई सरकार विदेशी मामलों में कोई भी निर्णय लेने में सक्षम नहीं है, उनका क्रियान्वयन तो बहुत दूर की बात है। दूसरा यह कि भारत की मजबूरी है कि वह चुनी हुई सरकार से ही बात करने को विवश है। वे कहते हैं कि मोदी का यह बयान पूरे विश्व को यह बतलाता है कि ‘प्रजातांत्रिक भारत’ पाकिस्तान से बात तो करना चाहता है किन्तु पाकिस्तान में सत्ता का समीकरण ऐसा नहीं होने देरहा। वे आगे कहते हैं कि हमारे ‘वस्तुतः’ विदेश मंत्री सरताज अज़ीज़ ने पाकिस्तान को सदा-सर्वदा ही शांति का समर्थक बताया है। उन्होंने इस विषय पर एक कदम आगे जाते हुए लिखा कि पाकिस्तान में सेना सदा ही विदेश नीति का संचालन करती रही है। वर्ष 1988-90 में बेनज़ीर भुट्टो और वर्ष 1997-99 में नवाज़ शरीफ ने सेना की नीतियों के विरुद्ध जब भारत से रिश्ते सुधारने की पहल की तो सेना ने ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। नज़म ने आगे लिखा कि मोदी का यह बयान भी “मोदी सिद्धान्त” का हिस्सा है जिसके द्वारा वे विश्व समुदाय में पाकिस्तान को अलग-थलग कर देना चाहते हैं।

पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सीनेटर शेर्री रहमान का कहना है कि पाकिस्तान बहु-परिभाषित विदेश नीतियों का अनुपालन नहीं कर रहा जिसकी वजह से वह विश्व में अलग पड़ता जा रहा है। यह खतरनाक स्थिति है।

पाकिस्तानी विदेश कार्यालय के प्रवक्ता नफीस जकरिया ने कहा कि पाकिस्तानियों को सेना पर नाज़ है। प्रधान मंत्री मोदी के वक्तव्य का ध्यान कराते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति सेना और चुनी हुई सरकार के बीच दरार नहीं पैदा कर सकता।

Sudhendu Ojha

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