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तांडव, मिर्जापुर और अवाम… क्या ये ओटीटी पर लगाम कसने की शुरुआत है?

इन दिनों वेब सिरीज़ ‘तांडव’ की ख़ूब चर्चा है. चर्चा सिरीज़ के कुछ दृश्यों को लेकर हो रहे विरोध की वजह से है. दो दिन पहले सूचना-प्रसारण मंत्रालय में हुई एक बैठक के बाद ‘तांडव’ के कुछ सीन काट दिए गए हैं. ‘तांडव’ बनाने वाली टीम ने बिना शर्त माफ़ी भी माँग ली है.

यह पहला मौका है जब इंटरनेट के ज़रिए चलने वाले प्लेटफॉर्म यानी ओटीटी पर दिखाए जाने वाले कंटेट में इस तरह की काट-पीट हुई हो.

इस लिहाज से यह एक गंभीर बात है, इसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भावनाओं के आहत होने की बहस को एक बार फिर तेज़ कर दिया है.

‘तांडव’ के विरोध की आग ठंडी नहीं पड़ी है. वेब सिरीज़ में शामिल लोगों को गिरफ़्तार किए जाने की माँग जारी है.

उत्तर प्रदेश पुलिस ने सिरीज़ के निर्देशक अली अब्बास जफ़र और सिरीज़ से जुड़े कुछ अन्य लोगों से पूछताछ करने और संभवत: उन्हें गिरफ़्तार करने के लिए एक टीम भी मुंबई भेजी है.

इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक पुरानी वेब सिरीज़ ‘मिर्ज़ापुर’ के ख़िलाफ़ नोटिस जारी कर दिया है. उत्तर प्रदेश पुलिस की एक दूसरी टीम इस सिरीज़ के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर के सिलसिले में भी मुंबई पहुँच चुकी है. ‘मिर्ज़ापुर’ बनाने वालों पर आरोप लगाया गया है कि उनकी सिरीज़ की वजह से मिर्ज़ापुर शहर का नाम बदनाम हुआ है.

मिर्ज़ापुर का सीज़न-2 कुछ समय पहले रिलीज़ हुआ है जबकि मिर्ज़ापुर का पहला सीज़न 2018 के नवंबर महीने में रिलीज़ हुआ था तब उस पर कोई हंगामा नहीं हुआ था.

‘तांडव’ को लेकर छिड़ा विवाद

तांडव के निर्माताओं ने जिस तरह सरकार की माँग स्वीकार की है, उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं. ये पहला मौका है जब इस तरह निर्माता-निर्देशकों ने माफ़ी मांगी है और सिरीज़ के सीन काटने पर राज़ी हुए हैं.

ये पहला मौक़ा नहीं है, जब किसी वेब सिरीज़ को विरोध का सामना करना पड़ा है. इससे पहले नेटफ़्लिक्स पर रिलीज़ हुई वेब सिरीज़ ‘सेक्रेड गेम्स’, ‘अ सूटेबल बॉय’ और एमी जैसा अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड जीतने वाली ‘डेल्ही क्राइम’ का भी विरोध हुआ था.

लेकिन अब से पहले फ़िल्मी हस्तियों से लेकर निर्माता-निर्देशक की ओर से अपनी सामग्री का बचाव किया गया है. इनमें से कई मामले अदालतों तक भी पहुँचे हैं.

‘सेक्रेड गेम्स’ के ख़िलाफ़ कोर्ट केस होने पर फ़ैंटम प्रोडक्शन और नेटफ़्लिक्स ने मज़बूती के साथ अपना पक्ष रखा था.

नेटफ़्लिक्स ने तो यहाँ तक कह दिया था कि वह अपनी सामग्री में बदलाव नहीं करेगी जबकि ‘तांडव’ के निर्माताओं ने सूचना-प्रसारण मंत्रालय के साथ हुई दो बैठकों के बाद मंत्रालय का शुक्रिया अदा करते हुए दो सीन निकाल दिए हैं.

सेंसरशिप की शुरुआत?

फ़िल्म समीक्षक तनुल ठाकुर कहते हैं, “इसकी आहट नवंबर में ही आनी शुरू हो गई थी, जब ओटीटी को मिनिस्ट्री ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से निकालकर सूचना-प्रसारण मंत्रालय के तहत लाया गया था. इसके बाद ही काफ़ी आशंका जताई गई थी कि अब सेंसरशिप का दौर शुरू हो सकता है क्योंकि हम जानते हैं कि सेंसर बोर्ड सूचना-प्रसारण मंत्रालय के तहत काम करती है.”

बीबीसी को प्रतिक्रिया देते हुए अभिनेत्री रेणुका शहाणे कहती हैं कि “अगर आप सच्चे हैं तो अपनी सच्चाई साबित करने के लिए आपको जंग तो करनी ही होगी.”

लेकिन जंग की बात तो दूर ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर बड़ी फ़िल्में और वेब सिरीज़ बनाने वाले निर्माता निर्देशकों ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी हुई है.

अनुराग कश्यप से लेकर अनुभव सिन्हा और शबाना आज़मी, मीरा नायर और वरुण ग्रोवर जैसी अनेक मुखर फ़िल्मी हस्तियों ने इस ख़बर के लिखे जाने तक ट्विटर के माध्यम से इस पर अपनी कोई राय सामने नहीं रखी है.

आगे की राह क्या है?

निर्देशक और निर्माताओं के सामने ये सवाल है कि क्या उन्हें भी सूचना-प्रसारण मंत्रालय में हाज़िरी देनी होगी. या उन्हें अपनी फ़िल्में रिलीज़ करने से पहले सेंसर बोर्ड या किसी अन्य बोर्ड की अनुमति लेनी होगी.

फ़िल्म आलोचक मिहिर पांड्या कहते हैं, “ये जो कुछ हो रहा है, वो सब कुछ उस एक बोर्ड या संस्था बनने की प्रक्रिया का हिस्सा है, जो ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर नज़र रखेगा, क्योंकि ऐसा माहौल तैयार करने की कोशिश की जा रही है जिससे लगे कि ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर कुछ ऐसा हो रहा है, जिस पर नज़र रखने की ज़रूरत है.”

केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड के निदेशक और ताशकंद फाइल्स जैसी फ़िल्म बनाने वाले डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री सेंसरशिप को ग़लत मानते हैं लेकिन वे वेब सिरीज़ निर्माताओं से ज़िम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं.

अग्निहोत्री कहते हैं, “मैं ये स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि सेंसरशिप ठीक नहीं है. वर्तमान सरकार का भी यही रुख है. मैं व्यक्तिगत रूप से ये मानता हूं कि कोई देश, संस्कृति या समाज इतना कमजोर नहीं होता है कि एक वेब सिरीज़, गाना या किताब उसे तोड़ सके. लेकिन समस्या तब खड़ी होती है जब इन चीजों का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में होने लगता है. जब ऐसा होता है तो इसकी प्रतिक्रियाएँ भी राजनीतिक ही होती हैं.”

विवेक अग्निहोत्री कहते हैं, “वो एक अनावश्यक सीन था. उसकी कोई ज़रूरत नहीं थी. और सीन देखकर स्पष्ट पता चलता है कि इसका इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में ही किया गया और लोगों को ये समझ आता है, इसीलिए प्रतिक्रियाएँ सामने आती हैं.”

अब क्या बदल जाएगा?

‘तांडव’ के मामले में जो कुछ हुआ है या मिर्जापुर के मामले में जो कुछ हो रहा है, उससे नए सवाल पैदा होते हैं. एक सवाल ये है कि इसका भारतीय वेब सिरीज़ के बिज़नेस पर कैसा असर पड़ेगा.

भारत में वेब सिरीज़ के पॉपुलर होने की एक वजह ये रही है कि इस मंच पर दर्शकों ने वो सब कुछ देखा है, जो वे सिनेमा हॉल में कभी नहीं देख सकते थे.

सिनेमा हॉल में पूर्व प्रधानमंत्रियों, बाबरी मस्जिद, बोफोर्स जैसे विषयों पर सीधे-सीधे टिप्पणी की उम्मीद भी नहीं की जा सकती. लेकिन सेक्रेड गेम्स जैसी सिरीज़ में इन मुद्दों पर बात की गई. अनुराग कश्यप और उनकी टीम को इसका विरोध भी झेलना पड़ा लेकिन उन्होंने अपनी सामग्री में किसी तरह का बदलाव नहीं किया.

लेकिन तांडव वाले घटनाक्रम के बाद आशंका जताई जा रही है कि भारत का ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म अब पहले की तरह नहीं रह जाएगा.

ये भी कहा जा रहा है कि इसका असर वेब सिरीज़ के बिज़नेस पर भी पड़ेगा क्योंकि भारत में बनने वाली वेब सिरीज़ को पहले भी अंतरराष्ट्रीय वेब सिरीज़ से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता था.

मसलन, नार्को जैसी अंतरराष्ट्रीय वेब सिरीज़ की तुलना में भारतीय निर्माताओं की वेब सिरीज़ को कम दर्शक मिलते हैं. ऐसे में खुलकर बोलने की आज़ादी, बड़े और विवादित विषयों पर सवाल उठाने की आज़ादी इन वेब सिरीज़ों को भारतीय दर्शकों में जगह बनाने का मौका देती थीं.

वे कहते हैं, “इस मुद्दे को व्यापकता में देखें तो पता चलता है कि ओटीटी ईकोसिस्टम पर तथाकथित वामपंथियों और उदारवादियों का एकाधिकार है. इस वजह से भारत में रहने वाले लोगों को लगता है कि उन्हें किनारे ढकेला जा रहा है. उनकी मान्यताओं आदि का मज़ाक बनाया जा रहा है.”

वे कहते हैं, “सीबीएफसी के निदेशक होने की वजह से मुझे इतने आवेदन आते हैं कि फलां सिरीज़ पर प्रतिबंध लगाया जाए. और ये किसी पार्टी की ओर से नहीं, बल्कि पेरेंट्स टीचर्स एसोसिएशन की तरफ़ से आते हैं क्योंकि कहीं-कहीं गालियों और सॉफ़्ट पॉर्न का इतना भद्दा इस्तेमाल होता है कि पता चलता है कि ये कहानी की माँग नहीं थी, बल्कि इसका इस्तेमाल वेब सिरीज़ चलाने के लिए किया गया है. जो कि ग़लत है. अगर ऐसा चलता रहेगा तो इस देश के बच्चों के घरवालों की माँग पर नियम बनाने ही पड़ेंगे.”

साभार : बीबीसी


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