
गोंडा ( उ . प्र ),
प्रत्येक वर्ष पौष पूर्णिमा के दिन जिले के पौराणिक स्थल सूकरखेत पसका के सरयू और घाघरा नदियों के पावन संगम के त्रिमूहानी घाट पर जिले ही नही अपितु पूरे देवी पाटन मंडल के लाखों श्रद्धालु स्नान करते हैं।
इस वर्ष यह पावन दिन 28 जनवरी , गुरुवार को पड़ रहा है। इस वर्ष करोना को लेकर कुछ लोगों का मानना है की भीड़ कम हो सकती है परंतु धार्मिक आस्था का भी अपना महत्व होता है इसलिय भीड़ तो रहेगी ही। पूरे जिले मे स्थानीय अवकाश रहता है।
गोंडा जिले के अधिकांश सरकारी कार्यालय और सभी विद्यालय बन्द रहते हैं जिससे किसी भी श्रद्धालु को पवित्र स्नान करने मे असुविधा ना हो। इस दिन इस पवित्र घाट पर एक वृहत मेला भी लगता है। प्रशासन की तरफ से सुरक्षा आदि की उचित व्यवस्था रहती है। बहुत से स्वंय सेवी संगठन भी मेले को सफल बनाने मे अपना सहयोग करते हैं।

इस पवित्र स्थान का अपना पौराणिक महत्व है। दो पवित्र नदियों का संगम तो है ही इसके अतिरिक्त और भी पौराणिक और धार्मिक कथायें इस स्थान से जुडी हैं। इसे भगवान वाराह की अवतार का स्थल भी माना जाता है। मान्यता यह है कि इसी पावन स्थान पर भगवान विष्णू ने पृथ्वी माता को हिरण्याक्ष नामक महादैत्य से मुक्त कराने के लिये भगवान वाराह का रूप धारण किया और उस महादैत्य का वध किया।
इसी कारण से यह पूरा क्षेत्र सूकरखेत अथवा वाराह क्षेत्र के नाम से भी प्रसिद्ध है।
एक और मान्यता भी है की इसी पवित्र सूकरखेत ( वाराह क्षेत्र ) मे स्थित गांव राजापुर रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली भी है। यहां गोस्वामी तुलसीदास जी के गुरु नरसिंह दास जी का आश्रम भी है।
हमारा भारतवर्ष पौराणिक महत्व के पवित्र स्थानों से भरा है। निश्चित है यह स्थान भी उनमे से एक है।
(ब्रजेश श्रीवास्तव)

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