बस यूँ ही बढ़ते चलो
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यह ज़िंदगी की जंग है
तुम भाग भी सकते नही
लड़ना पड़ेगा अनवरत
मन कर्म में,संघर्षरत।
प्रतिपल ही होंगी परीक्षाएँ
धीरज अडिग है या नही
टिक सको तो जीत लोगे
शिखर पर चढ़ते रहोगे।
राह में अपने मिलेंगे
दूर इनसे सदा रहना
इनका एक उद्देश्य होगा
तेरे लक्ष्य का संहार करना।
संवेदना के लहू बहेंगे
भावनाएँ बलि चढ़ेंगी
धैर्य से उत्थान के पथ
पग तेरे बढ़ते चलेंगे।
चारित्रिक संपूर्णता से
पूर्ण तेरा लक्ष्य होगा
शिखर होगा,प्रखर होगा
नित निरंतर, नित निरंतर।
कर्म से योद्धा बनो तुम
जो कर्म हो सत्कर्म हो
संवेदना से हो विभूषित
सत्कर्म अपना धर्म हो।
बस यूं ही बढ़ते चलो
संघर्ष को दलते चलो
कर्म से ही प्रीत हो
प्रीत ही निज धर्म हो।
बस यूं ही बढ़ते चलो
संघर्ष को छलते चलो
संघर्ष को छलते चलो।
-अनिल कुमार मिश्र, राँची