मैं और तुम जब हुए हम,
बरसते नयन अम्बर के
गये हैं वो भी देखो थम ।
दिलों की दूरियां भी तो ,
कि लगता था बढ गयी हैं
जरा सा पास हम जो आये
हो गयी वो भी अब हैं कम।
अब जब तुम साथ हो मेरे ,
दिलों को कुछ तो राहत है
वो हमको याद करते थे
हर लम्हा और हर दम ।
चलो अच्छा हुआ कि हम
वहीं पर फिर मिल गये हैं,
जहां पर थे हुए आरम्भ
हम दोनो के रंजो – गम।
(ब्रजेश श्रीवास्तव)