इधर बहुत व्यस्तता रही, न्यूज़ पोर्टाल को सही स्वरूप देने में और उसके ले-आउट को सुधारने में। उसमें नई-नई तकनीक के संयोजन में। अब इसमें टेक्स्ट को ध्वनि देने की सुविधा भी एम्बेड करा दी गई है।
वेब पोर्टाल जब बनने के नज़दीक आया तो इस संबंध में विज्ञप्ति प्रकाशन के लिए भेजी गई।
रिस्पॉन्स तत्काल आया। एक सुहृदय सज्जन आए।
मुझे बताया गया कि पोर्टाल केलिए 1 संपादक (वेतन 50 हज़ार रुपए), 2 सह संपादक (वेतन 30-30 हज़ार रुपए), 1 वीडियो एडिटर (वेतन 40 हज़ार रुपए), 1 ऑफिस ब्वाय (वेतन 12 हज़ार रुपए) के साथ-साथ वीडियो रिकॉर्डिंग कैमरा और कम्प्यूटर भी रखना पड़ेगा।
कैमरे और कम्प्यूटर पर 5 लाख का एक-मुश्त व्यय था। इसके बाद एक समाचार एजेंसी हायर करनी पड़ेगी। साधारण सेवा लेंगे तो कम पैसा देना पड़ेगा।
फेचिंग सर्विस ठीक रहेगी। आपको यस-नो करना पड़ेगा न्यूज़ स्वतः आपके फॉर्मेट में लग जाएगी। जिसका खर्च 15 से 20 हज़ार रुपए प्रतिमाह अलग था।
कुल मिला कर कम्प्यूटर और कैमरे पर खर्च के बाद 4 से 5 लाख रुपए महीने का व्यय। मैंने उन सज्जन से पूछा, इतना व्यय करने के बाद? उन्होंने कहा एक SEO पर्सन रखना पड़ेगा जो आपकी 1000 लाइक को एक लाख लाइक में बदल देगा।
आप सुनते हैं न फलाने पत्रकार के 10 लाख फालोवर हैं, ऐसे ही आते हैं। इस SEO को भी 20 से 30 हज़ार रुपए महीना देना पड़ेगा। यह काम वह घर बैठे करेगा।
मैंने पूछा इससे मुझे क्या लाभ होगा?उन्होंने कहा आप की रेटिंग बढ़ जाएगी और आपको विज्ञापन मिलने की संभावना बढ़ जाएगी।मैंने कहा विज्ञापन मिलने की संभावना?
उन्होंने कहा हाँ। विज्ञापन मिलने की संभावना। संभावना इसलिए क्योंकि जरूरी नहीं है कि आप को विज्ञापन मिले ही।
विज्ञापन मिले इसके लिए भी ग्लैमरस स्टाफ रखना पड़ेगा।मैंने सिर खुजाया। वे बोले, ऑफिस केलिए जगह भी चाहिए। और आपको विचारधारा भी चुननी पड़ेगी। मैंने कहा, मेरी विचारधारा में क्या खराबी है?
आप की विचारधारा माइल्ड है, मॉडरेट है। इसे तीखा करना पड़ेगा। या तो एक्सट्रीम लेफ्ट या फिर एक्सट्रीम राइट। बीच का कोई रास्ता नहीं है। बीच वाले को कोई पसंद नहीं करेगा। एक बात और, एक्सट्रीम राइट चलने पर आपको कुछ नहीं मिलने वाला।
मैंने मुंह बाए पूछा, एक्सट्रीम लेफ्ट? एक्सट्रीम राइट?
वे बोले, वामपंथी-नक्सली-मोदी सरकार विरोधी। एक्सट्रीम राइट माने दक्षिणपंथी, मोदी मीडिया। मोदी मीडिया बनने पर आप को सरकार से कोई पैट्रनेज नहीं मिलेगी। यह सरकार अपने हिमायतियों को कुछ नहीं देती।
सो इसके एंटी रहने में ही फायदा है।फलाने तथाकथित उर्मिलेश जी हैं, खबीस जी हैं, सोशलिस्ट हैं उनका चीनी न्यूज़ एजेंसी सिन्हुआ से पैसा आता है। चीन के हित की सारी सॉफ्ट न्यूज़ वो लगाते हैं। फलाने सिंह साहब हैं, उनको पाकिस्तान के अखबार डॉन की सरपरस्ती है। एक फलाना चौक पोर्टाल है वह जेएनयू से निकले वामपंथी लोगों का है, एक पुरानी न्यूज कास्टर माहेश्वरी का पति उसे निकालता है उसे भी बाहर से पैसा आता है।
मेरा तो ऐसा कोई संबंध नहीं है, मैंने कहा। तो आप को कोई इंडस्ट्रियलिस्ट पकड़ना पड़ेगा। वो क्यों आएगा? मैंने पूछा।
अपना पैसा व्हाइट करेगा। कैसे? वो आपके पोर्टाल को पैसे से हेल्प करेगा। आप उसे दूसरे तरह से हेल्प करोगे।
कैसे? मैंने पूछा।
आप 4 लाख महीने में खर्च करोगे। उसे 40 लाख का बिल दोगे। उसके पैसे व्हाइट हो जाएंगे। आप देखो बिस्कुट बनानेवाले, दवा बनानेवाले, योग-रोग वाले सब चैनल या पोर्टाल चला रहे हैं न?
वो इसीलिए चला रहे हैं।
मेरा सिर भन्ना गया। मैंने उनसे पूछा, आप का क्या दायित्व रहेगा?
बोले, आप ये सब न कर पाओगे। आपके बिहाफ मैं यह ज़िम्मेदारी संभाल लूंगा।
मेरी नींद खुल गई। (आज के मीडिया की स्थिति : सत्य घटना पर आधारित दुखांत सच)