राष्ट्रपति बाइडन ने शी जिनपिंग से पहली बार की बात, अमेरिकी चिंताओं से कराया अवगत
अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तनावपूर्ण रिश्तों के बीच नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से फ़ोन पर पहली बार बात की है
बाइडन ने ट्वीट करके बताया, ‘’मैंने आज राष्ट्रपति शी से बात की और चीन के लोगों को लूनर नए साल की बधाई दी. मैंने चीन के व्यापार के तरीकों को लेकर भी चिंता व्यक्त की, इसके अलावा मैंने वहां हो रहे मानवाधिकार के उल्लंघन और ताइवान के साथ होने वाली ज़ोर-ज़बरदस्ती पर भी चिताएं प्रकट कीं. मैंने उनसे कहा है कि अमेरिका चीन के साथ तभी काम करेगा जब इसका फ़ायदा अमेरीकी लोगों को होगा.‘’
चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर की शुरूआत ट्रंप प्रशासन के दौर में हुई. जो बाइडन के प्रशासन का चीन को लेकर क्या रूख़ होगा इस पर सबकी नज़रें बनीं हुई हैं.
अमेरिका और चीन के बीच टकरार की वजह
1972 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से सामान्य रिश्ते बनाने की ओर कदम बढ़ाया था, तब से लेकर अब दोनों देशों के रिश्ते सबसे ख़राब दौर में पहुंच चुके हैं.
रिश्ते ख़राब होने की शुरुआत 2013 में तब से हुई जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग सत्ता में आए. शी जिनपिंग अपने पहले के राष्ट्रपतियों के मुक़ाबले ज़्यादा मुखर और दबंग माने जाते हैं.
चीन ने तनाव को और हवा तब दी जब वो हॉन्ग-कॉन्ग के लिए कठोर सुरक्षा क़ानून लाया और चीन में अल्पसंख्यक वीगर मुस्लिमों के कथित दमन की रिपोर्ट्स आने लगीं. लेकिन ट्रंप प्रशासन के साथ चीन का टकराव एक वैचारिक वैश्विक नज़रिए के चलते बहुत ज़्यादा बढ़ गया.
शीत युद्ध की याद ताज़ा करते हुए उन्होंने चीनी नेताओं पर आरोप लगाया कि वो अपना वैश्विक वर्चस्व कायम करने के लिए तानाशाही कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने अमेरिका और चीन के मुक़ाबले को आज़ादी और उत्पीड़न का संघर्ष बताया.
अमेरिका ने चीन पर टैरिफ़ बढ़ाना शुरू कर दिया, इसके जबाव में चीन ने भी यही किया. इस तरह दोनों देशों के बीच ट्रेड-वॉर शुरू हो गई.
बीते साल जुलाई में अमेरिका ने ह्यूस्टन स्थित चीनी वाणिज्य दूतावास को बंद करने का आदेश दिया.
अमरीका के इस कदम का चीन ने भी जल्द ही जवाब दे दिया. उसने पश्चिमी चीनी शहर चेंगडू में अमरीका को अपना कांसुलेट बंद करने का आदेश दिया. कांसुलेट पर कोई नीति बनाने की ज़िम्मेदारी नहीं होती. लेकिन व्यापार करने और किसी तरह की पहुंच के लिए इसकी अहम भूमिका होती है.
ये उस राजनयिक बुनियादी ढांचे पर एक और चोट थी जिसके ज़रिए दोनों देश एक दूसरे से बातचीत करते थे.
चीनी सरकार का मानना है कि अमेरिका प्रशासन, चीन को रोकना चाहता है ताकि वो अमेरिका से आर्थिक रूप से आगे ना निकल जाए. चीनी सरकार में कई लोग ख़ास तौर पर इस बात को लेकर नाराज़ हैं कि अमरीका ने चीनी टेलिकम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी को लेना बंद कर दिया है.
सबकी नज़रें बाइडन प्रशासन पर हैं कि वह इसे लेकर क्या क़दम उठाएंगे.