अब आ भी जाओ तुम : एक गजल

मैं अपने दिल का तुम्हे एक एक एहसास देता हूं ,
कि अब आ भी जाओ मैं तुम्हे आवाज देता हूं।

तुम्हारे हाथ की नरमी अभी तक याद है मुझको,
बस उसकी याद मे मैं अपनी रातें काट देता हूं।

किस्मत का मेरे हर खेल अब तुम पर ही निर्भर है ,
खुद ही से जीतता हूं और खुद ही को मात देता हूं।

तुम्हारा नाम लिखकर सैकडों कागज के पन्नों पर,
फिर उन कागज के पन्नों को मैं अक्सर फाड़ देता हूं।

मेरे दिल से तुम्हारी याद बिल्कुल भी नही जाती,
उन्ही यादों को अपने दिन और अपनी रात देता हूं

(ब्रजेश श्रीवास्तव)

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