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यूं ही…..”अंधों के अंधे ही पैदा होते हैं” से “मौत का सौदागर” तक

यूं ही यह सब लिखना नहीं चाहता था पर खुद को रोक नहीं पाता। कोरोना की महामारी ने समूचे विश्व को निगलना शुरू कर दिया है।

मौतों का सिलसिला है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा। आज ही भारत भर में चार हज़ार मौतें इसी रोग से हुई हैं।

पिछले कई दिनों से मौत का यह तांडव जारी है। इसीलिए यह सब लिखना और जरूरी हो गया है।

तो सब से पहले, ”अंधों के अंधे ही पैदा होते हैं” यह महाभारत सीरियल में मरहूम राही मासूम रज़ा का लिखा हुआ संवाद नहीं था। हजारों साल पहले शायद वेद व्यास जी इसे पांचाली के मुख से कहलवा चुके थे।

परिणाम क्या रहा इससे हम सब अनभिज्ञ नहीं हैं। महाभारत का भीषणतम युद्ध और महा विनाश।

अब हजारों साल पहले जब वेद व्यास जी ने महाभारत रचा होगा तब हम तो थे नहीं सो इसे मिथक ही मान लेते हैं। नारी सशक्तिकरण के इस छद्म युग में वेद व्यास जी के ऊपर यह आरोप स्वाभाविक रूप से लगता है कि उन्होंने पांचाली के मुख से ऐसा संवाद निकलवा कर सम्पूर्ण विश्व की महिलाओं का अपमान किया। उन्होंने इस संवाद के माध्यम से एक नारी को महाविनाशकारी युद्ध का कारक बना दिया था।

आज का युग होता तो उन्हें अवश्य ही अपनी इस रचना में संशोधन करना पड़ता नहीं तो राजेंद्र यादव और और उनके समूह की पांचालियाँ तय है उनके नाक में दम कर देतीं। राजेंद्र यादव को ‘हंस’ के कई अंक इन पांचालियों के उद्गार केलिए समर्पित करने पड़ते और वो अंक भी कम पड़ते क्योंकि आजकल भ्रमित और स्वयं को पांचाली घोषित करने वाली नारियों की कमी कहाँ? और वह भी जिसे राजेंद्र यादव की बैसाखी की कल्पना ही स्फूर्त सेक्स के लिए आंदोलित कर जाती हो?

खैर, इन सब से इतर हम मुख्य मुद्दे पर आते हैं। वेद व्यास जी ने एक पुरुष होकर नारी भावना को ठेस पहुँचाते हुए ऐसा षड्यंत्रकारी संवाद लिखा।

हमें नहीं पता था कि हमारे जीवित होते हुए फिर कोई पुरुष स्क्रिप्टराइटर ऐसा ही कोई संवाद किसी स्त्री के मुख से कहलवाएगा। वर्ष दो हज़ार सात में फिर कुछ वैसा ही हुआ। अब महाभारत से संकुचित हो कर यह देश भारत भर रह गया था जिसके और भी विखंडन की आवश्यकता थी ऐसा यहाँ के शासकों का विश्वास था।

भारत एक छोटे से संघ शासित गणराज्य में सिमट चुका था। ऐसे ही एक गण में जहां का क्षत्रप लगभग अपराजेय स्थिति में था का चुनाव जीतने केलिए संघ में शासन करनेवाली ‘महिला’ ने फिर पांचाली का स्मरण कराते हुए उस अपराजेय योद्धा को “मौत का सौदागर” कह दिया।

इस अजातशत्रु क्षत्रप ने देर न लगाई और उस महिला द्वारे मारे गए ताने को लाउडस्पीकर पर और एम्प्लीफाई कर दिया। मोहतरमा जो चाहती थीं वही हुआ घर-घर, समाज-समाज, प्रांत-प्रांत और पूरे राष्ट्र भर में प्रचारित हो गया कि अजातशत्रु क्षत्रप नरेंद्र “मौत का सौदागर” है।

इस संवाद का बड़ा हो-हल्ला रहा। बहुत प्रचार मिला। सबने मिल कर खोजने का प्रयास किया कि इस तरह का संवाद भला कौन लिख सकता है?

कुछ खोजी पत्रकार पड़ताल में लग गए।“गुरु! यह स्क्रिप्ट तुमने लिखी होगी?” “नहीं भाई यह मैं नहीं लिख पाया।“ मलाल में दूसरे ने जवाब दिया।एक पत्रकार दूर की कौड़ी लाया बोला “भाई जी यह तो बंबइया डायलोग है। इसे जरूर जिरह बख्तर ने लिखा होगा।”

जिरह बख्तर कमाल का बंबइया स्क्रिप्ट राइटर था। चालू और ताली पिटवाने वाले भौंड़े डायलोग लिखवाने वाले उसके यहाँ लाइन लगा कर खड़े होते थे। “जिरह बख्तर जी मैडम ने जो कुछ कहा है, सुना है वह जुमला आपने लिखा है?”एक चैनल के पत्रकार ने जिरह बख्तर के मुंह में माइक घुसेड़ते हुए पूछा।

“देखिए! मैं होता तो और जाने क्या-क्या लिखता उस व्यक्ति के बारे में। उसको मौत का सौदागर कहना तो बहुत हल्की बात है और आप जानते हैं मैं ऐसी हल्की बातें नहीं लिखा करता।“ जिरह बख्तर ने सफाई देते हुए कहा।

मामला आया-गया हो गया। कुछ दिनों बाद संघ में सरकार चलाने के लिए चुनाव हुए। संघ में शिखंडी सरदार के पीछे से शासन कर रही यह महिला अपदस्थ हो गई।

कई कारण थे।

शिखंडी सरदार आचरण के सरदार थे। हमेशा सफ़ेद पोशाक पहनते थे। उस पर कोई दाग नहीं होता था।

“आपके मंत्री देश लूट रहे हैं!” जब-जब जनता उन्हें ऐसा कहती, सरदार अपने लक्क-झक्क सफ़ेद कुर्ते की तरफ इशारा करते और कहते “इसमें कोई दाग दिखाई दे रहा है, आपको?”

जनता चुप रह जाती। शिखंडी सरदार के सत्ता में रहते बड़े-बड़े कारनामे इस महिला के चाटुकारों ने किए।

महिला का पति पहले ही दूसरे देशों से औज़ार खरीदने में दलाली लेने के घपले में फंस चुका था अतः इस बार यह महिला प्रत्यक्ष तौर पर अपने ऊपर इल्जाम न लेना चाहती थी।

• अबकी बार जब अगस्टा से हेलिकॉप्टर खरीदे गए तो आगे ऐसे व्यक्तियों को रखा गया जिन पर जनता कभी शक ही न कर सके। दशकों बाद खुलासा हुआ कि देश की हवाई सुरक्षा के जिम्मेदार उप-प्रधान जैसे लोग अरबों रुपये एक हाथ से लेकर दूसरे हाथ मैडम को देते रहे।

• पति के नाम पर ट्रस्ट बनाया गया। शिखंडी सरदार ने जनता से कर के रूप में प्राप्त सौ करोड़ रुपये ट्रस्ट में देदिए।

• राष्ट्र के घोर शत्रु देश से तीन सौ करोड़ रुपये ट्रस्ट में डलवाए गए, ट्रस्ट अध्ययन करना चाहता था कि उस शत्रु राष्ट्र का किस तरह भारत में हित विकसित किया जा सके। एक अन्य धर्मांध मौलवी जो गाज़ी बनाना चाहता था से ट्रस्ट ने सौ-सौ करोड़ रुपये लिए। आज कल यह गाज़ी अपने पीस चैनल को लेकर मलेशिया में बसा हुआ इस मौके की तलाश में है कि कब मैडम दुबारा सिंहासन की बागडोर संभाले।

• देश की कोयले की खानों को बिना किसी मूल्य के तलवे चाटनेवालों को आबंटित कर दिया गया जिन्होंने केवल कागज पर पावर स्टेशन का चित्र बना कर जमा कर दिया था। कागज पर प्राप्त उन कोयला खदानों को आगे चलकर उनके द्वारा ऊंची बोली लगानेवालों को बेच दिया गया। इस तरह से आया पैसा मैडम को भी प्रस्तुत होता रहा।

• मुंह में बवासीर वाले एक नेता के अर्दली को देश के जहाजों की बागडोर दे दी गई। जहाज कंपनी घाटे में चल रही थी पर इस अर्दली को अपने बॉस का हुक्म मानना था। पहले इस जहाज कंपनी के फ़ायदे में चल रहे रूट को बंद करने का निर्देश दिया गया ताकि प्राइवेट कंपनी के जहाज वहाँ चल सकें। फिर पार्टी फंड केलिए उसने नए जहाज खरीदने की डील की। रूट बंद करने केलिए उसे प्राइवेट कंपनी से भी मोटी रकम मिली और नए सौदे से भी। मुंबई में मुंह में बावासीर वाले इस नेता का एक और नुमाइंदा अभी सौ करोड़ महीना कमाने के चक्कर में फंसा हुआ है। जब पैसे की उगाही हो गई तो शिखंडी सरदार ने जहाजों की निगरानी का जिम्मा एक मरे हुए किसान क्षत्रप के बेटे को सौंप दिया जो विदेश से केवल ‘कारोबार’ बढ़ाने केलिए ही भारत लौटा था, जिसका अभी-अभी निधन हुआ है।

• देश के सैनिकों के नाम पर मुंबई में अनादर्श सोसाइटी बना कर बिल्डिंग बनाकर अरबों रुपये का खेल रचा गया। शिखंडी सरदार चुप ही रहा।

• इस असरदार महिला का नाम लेकर कई पत्रकार शिखंडी सरदार से अपनी मर्जी के मंत्री का चुनाव करवाते रहे।

• शिखंडी सरदार की अकर्मण्यता सरकारी अधिकारियों और मनसबदारों से छुपी नहीं थी सो अधिकांश अधिकारी और मनसबदार भ्रष्टाचार की गंगा में ‘हर-हर गंगे!’ कर रहे थे।

• दूसरों पर निगरानी रखनेवाला पुलिसिया महकमे का आला अधिकारी रणजीत चिन्हा इसका ज्वलंत उदाहरण बना।

• कई देश मिल कर खेल, खेलते हैं उसे कॉमन वेल्थ खेल कहते हैं। शिखंडी सरदार को निर्देश हुआ कि इस बार यह मेजबानी का खेल हम खेलेंगे।मैडम के अर्दली को इस खेल की आयोजन समिति का प्रमुख बनाया गया। हजारों करोड़ रुपये का बजट रखा गया। बजट को हर बार बढ़ाया गया। उसे लाखों करोड़ तक पहुंचा दिया गया। मैडम के अर्दली ने सारे पैसे चुपचाप मैडम के हवाले कर दिए। शिखंडी सरदार का कुर्ता एकदम लक्क-दक्क चमकदार रहा, बिना किसी धब्बे के।

• अखबार पर हुकूमत करना इस महिला के बुज़ुर्गों का शगल था। पर अखबार था कि बिकता न था। सो अखबार की मिल्कियत इस महिला ने लोन देकर खरीद ली। अखबार की मिल्कियत ही हजारों करोड़ रुपये की थी, जबकि महिला ने इसके लिए अखबार को सुना है नब्बे करोड़ रुपये का लोन दिया था।

• इसी अखबार के नाम पर देश के हर राज्य में प्राइम जगह पर कौड़ी के भाव ज़मीनें ली गईं। अखबार पाँच पैसे का नहीं निकला। गोदी मीडिया-गोदी मीडिया चिल्लाने वाले किसी अखबार-नवीस ने इस की चर्चा नहीं की।

• महिला ने अपनी लड़की की शादी रचवाई। किसी डॉक्टर से नहीं, किसी इंजीनियर से नहीं, किसी ग्रामीण भारतीय से नहीं। अपने मजहब के कबाड़ी ठठेरे से। पीतल का कारोबारी था।

इस महिला की लड़की से शादी रचाने के बाद वह कबाड़ी से उद्योगपति बन गया। उसे पता था, जब भाग्य बदलता है तो इंसान मिट्टी भी छूए तो वह सोना बन जाती है। सो वह मिट्टी का कारोबार करने लगा।

वह हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली में जाता। वहाँ मिट्टी देखता। जहां की मिट्टी पसंद आ जाती घर आकर बतला देता। शिखंडी सरदार के यहाँ से इशारा होता, अगली सुबह लोग पैसों की थैली लेकर जमाई राजा के घर पहुँच जाते।

जमाई राजा किसी से चालीस करोड़ तो किसी से सौ करोड़ रुपये लेते। यह पैसे उन्हें उधार कह कर दिये जाते। हालांकि इसका कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता। जमाई बाबू का मिट्टी खरीदने का कारोबार जम कर चला।

ठठेरी का काम छोड़ कर वो प्राइम-रियलिटी के अरबों रुपये के मालिक बन बैठे।

इस महिला के कारनामे तो और भी बहुत हैं पर उनका जिक्र अगर करने लगेंगे तो मुख्य मुद्दे से भटक जाएंगे। हाँ तो मैं कह रहा था कि इस महिला ने जिसे मौत का सौदागर कहा था उसके समर्थक कह रहे हैं कि आज वह बात सौ आने सही सिद्ध हो रही है।

मैं तो खैर क्या, शायद आप सब इस बात से सहमत होंगे कि यदि इस महिला द्वारा सन दो हज़ार सात में कही गई बात को इस देश के वासी स्वीकार कर लेते और उस अजातशत्रु नरेंद्र को ‘मौत का सौदागर’ मान लेते तो इस महिला की सत्ता संघ पर बनी रहती।

देश में इस तरह की त्रासदी न आई होती।

इस महिला की सत्ता संघ पर बनी रहती तो देश कोरोना के इस महाविनाश से बच जाता और :

• एक नीच चाय वाला दूर-दराज का साधारण व्यक्ति देश के सिंहासन से उसे अपदस्थ न कर पाता। वह जब तब शिखंडियों को आगे कर सत्ता भोगती रही। शिखंडियों की कमी जब इस देश में हजारों वर्ष पूर्व नहीं थी तो अब इस समय में कैसे हो सकती है। अब तो आबादी कई गुना बढ़ गई है।

• चारा चुरानेवाले, गाँव में नाच करानेवाले, टोंटी उखाड़नेवाले, टुकड़े-टुकड़े करनेवाले सब इस देश में अमन चैन की बंसी बजवाते।

• जमाई राजा को दुख न पहुंचता और उसका मिट्टी का कारोबार चलता रहता।• अखलियत मजे में रहती, उसे अक्सरियत का कोई भय न रहता। अक्सरियत को डराने केलिए उन्हें एके-47 सभी सरकारें निशुल्क उपलब्ध करवातीं।

• कोरोना आता ही नहीं क्योंकि सत्ता की बागडोर उनके पप्पू के हाथों होती और पप्पू आधुनिक दूरद्रष्टा और फिलोस्फर, उसके पास हकीम लुक़मान का हर समस्या का पुर्जा।

• मैडम एक बहुत बड़ी योजना बनातीं, सपने सुनातीं। सारे गाँव में एम्स की तर्ज़ पर अस्पताल खुलते। अर्दलियों को ऑक्सीज़न प्लांट लगाने के इतने लाइसेन्स दिये जाते कि किसी मरीज को ऑक्सीज़न की कमी न होने दी जाती।

• जब हर गाँव में एम्स खुल गए होते तो लोग वहीं मर रहे होते उन्हें बड़े शहरों में अस्पताल नहीं तलाशने पड़ते। मैडम के कहने पर चारा-चोर, गाय-भैंसों, बकरियों जैसे जानवरों का और टोंटीचोर नचनियों केलिए अस्पताल खुलवाते। सर्वहारा की प्रतिनिधि केवल दलितों केलिए अस्पताली स्मारक खुलवातीं।

• देश वैसे ही वेंटीलेटर पर रहता अतः वेंटीलेटर आयात करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। मैडम की राजशाही बची रहती। उनकी छत्र-छाया में सभी बचे रहते। हम भी और शायद भारत भी। अब मैं भी सोचने को विवश हो गया हूँ कि महिलाएं सच में सच बोलती हैं। एक पांचाली ने हजारों वर्ष पूर्व बोला था और एक ने सन दो हज़ार सात में।आपको असहमत होने का भी अधिकार है….

सादर,

सुधेन्दु ओझा

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