अपने ही कंधों पर अपनी लाश लिए मैं चलता हूँ
रिश्ते सारे मिथ्या हैं,मृत हैं,नित जलता हूँ,चलता हूँ।
अग्नि कौन देगा यह चिंता,हे राम तुम्हारे कंधे पर
जपकर प्रतिपल नाम देश का,कर्म भूमि तक बढ़ता हूँ।
राजनीति रिश्तों की प्रतिपल,सबको ही तड़पाती है
एक छत के नीचे हृदयहीन,मज्जा,अस्थि
कलपाती है।
सब के सब रिश्ते वैकल्पिक,रक्तपिपासु सब के सब
अच्छा है कंधे अपने हैं,टिका सके इस तन को जो अब।
समझे कौन रहस्य रिश्तों का,भ्रम है जो भी है माया है
यह जगत पूर्ण जंजाल युक्त,सब माया की छाया है।
रिश्तों की माया से बचना,सब लालच की छाया है
कुछ इस छाया की माया है,कुछ माया की छाया है।
अपने ही कंधों पर अपनी लाश लिए मैं चलता हूँ
रिश्ते सारे’जीवित-मृत’हैं,जलता रहता हूँ,चलता हूँ।
अनिल कुमार मिश्र,
राँची, झारखंड, भारत