इन्द्रधनुष सा ख्वाब तुम्हारा

थकी हुई आंखें जब मेरी
गहरी नींद मे सो जाती हैं।
दिल की शान्त दीवारें भी जब
याद मे तेरी खो जाती हैं।

रात सुहानी गाती है जब
मध्यम मध्यम राग तुम्हारा।
दबे पांव फिर आ जाता है
इन्द्रधनुष सा ख्वाब तुम्हारा।

बोझिल सी आंखें मेरी जब
पलकों का भार न सह पाती हैं।
तुम्हे देखने की ख्वाईश मे
शाम ढले ही सो जाती हैं।
पलकों के अन्त: पृष्ठों पर
लिख जाता है नाम तुम्हारा।


चुपके से फिर आ जाता है
इन्द्रधनुष सा ख्वाब तुम्हारा।


( ब्रजेश श्रीवास्तव )

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