सौ रुपये का नोट : एक लघु संस्मरण

कोई खोई हुई या रास्ते मे गिर गयी अपनी किसी चीज को खोजा जाय और वो वापस मिल जाय तो एक सुखद अनुभूति होती है। ये बात कुछ विशेष मायने नही रखती कि उसका मूल्य क्या है।

आज शाम को कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ। शाम के समय एक घरेलू सामान की आवश्यकता पडी तो सोचा वालेट क्या लें , ऐसे ही 500 रुपये का एक नोट शर्ट की जेब मे रख लिया और मोटरसाइकिल से मेन सर्कुलर रोड पर कुछ सामान खरीदने चल दिया। दुकान पर सामान खरीदने और भुगतान के बाद एक 100 रुपये का नोट और कुछ सिक्के वापस मिले उन्हे वापस शर्ट की जेब मे रख लिया और मोटर साइकिल से वापस आ रहे थे।रास्ते मे पुत्र शिखर का फ़ोन आ गया तो मोटर सायकिल साइड मे रोक कर और शर्ट की जेब से फ़ोन निकालकर बात किया। बात पूरी हुई और फ़ोन वापस जेब मे रखकर घर वापस आ गये।
घर पहुंचे तो आश्चर्य हुआ , जेब मे सिक्के तो थे पर 100 का नोट गायब। 100 रूपया का गिर जाना कोई इतनी बड़ी बात नही थी कि उसके लिये कोई हाय तौबा की जाय पर फिर भी उस नोट का यूँ ही गिर जाना अच्छा नही लगा और थोड़ा अफसोस भी हुआ।

अभी कुछ ही देर पहले ही वो नोट किसी और के पास था पर अब वो मेरे पास था। नोट से आत्मीयता स्वाभाविक है। उस नोट के प्रति मेरी आत्मीयता और अपनेपन का मूल्य उसके बाजार मूल्य से कहीं अधिक था। मन मे एक अपराध बोध भी था कि मेरी ही चूक या लापरवाही के कारण ही वो नोट कहीं जमीन पर पडा होगा।

काफी सोच विचार के बाद ऐसा लगा कि रास्ते मे जब फ़ोन काल आया था, हो सकता है उसी समय फ़ोन के साथ नोट भी गिर गया हो। फ़ोन किस जगह आया था इसका अनुमान था और दूरी भी अधिक नही थी इसलिए मन मे आया कि क्यों ना खोजने का एक प्रयास कर ही लिया जाय।

उस नोट की तलाश मे पैदल ही , नजर को सड़क की उसी दिशा मे केंद्रित कर धीमे धीमे चलने लगा। बीच बीच मे अपने हाव भाव और चलने की गति को बदल लेता था कि किसी को इसका आभास ना हो कि मैं कुछ खोज रहा हूं।

चलते चलते उसी रोड पर थोडी दूरी पर रह रहे अपने मित्र सुधीर के घर तक पहुंच गया पर नोट नही मिला। वहां तक तो जाना ही था क्योंकि फ़ोन काल उसी जगह के आस पास ही कहीं आया था।

बहरहाल नोट नही मिला तो निराश कदमो से वहीं से वापस आने लगा। मन मे एक संतुष्टि थी और इस बात का पछ्तावा नही था कि मैने प्रयास नही किया।

वापस लौटने मे अभी तकरीबन 20-25 कदम ही चला होगा कि मेरी आंखे खुशी से चमक उठीं। मेरे सामने ही वही 100 का नोट सड़क के किनारे ही पड़ा था। मैं एक टक उसे देखता रह गया। ऐसा लगा कि नोट मुझसे कह रहा हो कि मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा मे था वर्ना जाने को तो मै किसी वाहन के पहिये मे चिपक कर कहीं और चला जाता या उड़कर इधर उधर हो जाता या किसी और के हाथ लग जाता। अनायास ही मेरे मन मे नोट का ऐसा मानवीय चित्रण हुआ।

मैंनें तुरन्त उसे उठाकर सम्मान पूर्वक माथे से लगाया और जेब मे रख लिया। मैने जेब मे झांक कर नोट को देखा। एक बार फिर उसका मानवीय चित्रण होने लगा। ऐसा लगा वो मुझे धन्यवाद बोल रहा हो। पर शायाद हम दोनो ही एक दूसरे को धन्यवाद कह रहे थे।मुझे ऐसा करते एक दो लोगों ने देखा पर सब कुछ इतना तेज गति से हुआ कि कोई भी वो माजरा समझ नही पाया। सब कुछ सामान्य सा ही हुआ।

मैने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया और अपने प्रयास को खुद ही सराहा। था तो वो सिर्फ 100 रुपये बाजार मूल्य का एक नोट लेकिन मेरी उस उत्सुकता , प्रसन्नता , संतुष्टि और सुकून का क्या मूल्य होगा जिसकी अनुभूति मुझे उस समय हुई थी।


( ब्रजेश श्रीवास्तव )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »