नई दिल्ली/24 अप्रैल 2022:
विश्व पुस्तक दिवस पर भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित डॉ. प्रभाकिरण जैन द्वारा संपादित पुस्तक*भारतनामा* पर केंद्रित “भारत का नामकरण “एवं “भारत की आदर्श राजनीति” विषय पर आयोजित आभासी परिचर्चा दिनांक 23/ 4/ 22 को सम्पन्न हुई।
परिचर्चा की अध्यक्षता प्रख्यात समाजसेवी ब्रह्मचारी देवेन्द्र भाई ने की।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ इतिहासकार डॉ भगवान सिंह के सांनिध्य में वक्ताओं में साहित्यकार एवं सम्पादक डॉ हरिसिंह पाल ने कहा कि भारत नामकरण की सत्यता पाठ्य पुस्तकों तक पहुंच सके तभी भारतनामा पुस्तक से जुड़ा श्रम सार्थक होगा। ऋषभ पुत्र भरत से हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा नाकि जो हम दुश्यंत के पुत्र से पडा आज भी पढा रहे हैं यह सुधार कर सही तथ्य सामने लाने का यह प्रयास सराहनीय है। हम भी इसमें हर संभव सहयोग करेंगे और इसे पाठ्यक्रम निर्धारण एवं निर्माण करने वाली संस्थाओं से मिलकर आगे बढाएगे।
लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर धर्म दर्शन के प्रकांड पंडित डॉ वीर सागर जैन ने भारतनामा पुस्तक की महत्ता पर प्रकाश डाला एवं कहा कि भारत की पहचान उसकी पारम्परिक आदर्श राजनीति को अपनाने से है जो राजा को अधिकारी नही सेवक मानती है ।
सत्य, समर्पण और सेवा भाव यह राजाओं का आदर्श रहा है। किसी पर बलात् आक्रमण कर उस पर अधिकार करना भारत के राजाओं की राजनीति नही रही ।पूरे विश्व के छः खण्डो पर विजय कर पूरे राष्ट्र को भारतवर्ष के नाम से प्रसिद्ध करने वाले चक्रवर्ती सम्राट भरत ने एक बूंद खून बिना बहाये राज किया। इतिहास के असिस्टेंट प्रोफेसर आरा बिहार से जुड़े डॉ. मंजर अली ने कहा कि तमाम साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक प्रमाण यही कहते हैं कि ऋषभदेव के पुत्र के नाम से हमारा देश भारतवर्ष कहलाया । खारवेल के लगभग ढाई हजार वर्ष प्राचीन लेख मे इसे भारतवर्ष कहा गया है। वेबीनार परिचर्चा के सह संयोजक एवं समाज सेवी संयम जैन ने सभी का स्वागत करते हुये पुस्तक के विषय और महत्व पर प्रकाश डाला।
इस पुस्तक की संपादिका डॉ प्रभा किरण जैन ने कहा कि हमारा देश भारत कर्म युग के आरंभ से ही विश्व गुरु रहा है।भारत की आदर्श राज्य नीति की परिकल्पना वहीं से आरंभ होती है। देश का नामकरण भारत भी सभ्यता के आदिकाल मे ही अंतिम कुलकर नाभि के नाम से अजनाभ वर्ष और उनके पौत्र भरत से भारत हो गया जिसके पुष्ट प्रमाण मौजूद है ।
सत्य का सत्यापन निष्पक्ष भाव से होना आवश्यक है ताकि भावी संतति अपने देश के नामकरण के सत्य स्वरूप को जाने। लेखक एवं परिचर्चा संयोजक शैलेंद्र जैन ने कहा कि इस नाम की तार्किकता इक्ष्वाकु वंश से जुड़ी है जो अयोध्या कोशल के थे उनकी पहचान ही वह गुण थे जो धर्म के अंतर्गत आते हैं। इन गुणो के लिये इनको ही आर्य कहा गया इनकी विशेषता मे सत्य धर्म दिव्य पवित्र पूर्णतेज यशस्विता आदि गुण रहे है। इनके बाद भरत से भारत वंश चला जो आगे सूर्यवंश कहलाया ।साथ ही उन्होंने सबका आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन सुश्री पिंकल शाह ने किया।
-चन्द्रकान्त पाराशर (वरिष्ठ मीडिया सलाहकार) खनेरी, शिमला हिल्स