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गुलेल सेना

एक दौर था या यूँ कहें कि एक समय था जब पूरा भारत अंग्रेजों के आधीन था। क्या गांव क्या शहर हर जगह लोग अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार से त्रस्त थे। सम्पूर्ण भारत मे जगह जगह अंग्रेजी हुकूमत के विरोध मे धरना , प्रदर्शन , आन्दोलन , सत्याग्रह आदि जोरों पर था। तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों द्वारा विरोध और बलिदान की कहानिया लोगों मे एक जोश भर रही थीं।

समाज का हर वर्ग देशभक्ति और अंग्रेजी शासन के विरोध के लिये प्रेरित हो रहा था। अंग्रेजी पुलिस भी उन्हे कुचलने का पूरा प्रयास कर रही थी। लोगों मे इस बात को लेकर भी बहुत अधिक रोष था कि अंग्रेजी पुलिस के जवानों मे तमाम भारतीय भी थे जिन्हे भारतीयों को ही कुचलने मे प्रयोग किया जा रहा था।

ऐसे मे शहर से दूर एक छोटा सा गांव। वहां भी अंग्रेजी शासन के विरोध की लहर पहुंच चुकी थी। गाव मे लोग चौपालों पर मीटिंग कर एक दूसरे को देशभक्ति और अंग्रेजी शासन के विरोध के लिये जागरूक कर रहे थे। मीटिंग मे छोटे छोटे बच्चे व महिलाएं भी शामिल होती थीं। वैसे तो लोग बच्चों को मीटिंग मे आने से रोकते थे पर बच्चों की उत्सुकता उन्हे वहां खींच लाती। मीटिंग मे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और देशभक्तों की वीरता और बलिदान की कहानिया सुनाई जातीं थीं। कुछ बच्चे कहानियां सुनने की लालच और जिज्ञासा मे भी आ जाते थे।

अभी कुछ ही दिन पहले हुई एक घटना से गांव के लोगों मे आक्रोश भरा था। अंग्रेजी पुलिस के साप्ताहिक गस्त का दिन था। जब भी ये दिन आता और गांव के लोगों को पुलिस के घोड़ों की टक-टक सुनाई पड़ती , लोग घर से बाहर सड़क पर आ जाते, सिर्फ इसलिये कि वो कोई अधिकारिक घोषणा सुनने से वंचित ना रह जांय।

गांव के मुख्य मार्ग से 5-6 घुड़सवार पुलिस सरपट घोड़े दौड़ाते हुए गुजरे। एकाएक रास्ते मे घोड़ों के बीच एक बूढ़ी महिला आ पड़ी और छिटक कर एक किनारे गिर गई। महिला को काफी चोट आयी।गांव के लोग जो आस पास थे महिला की तरफ दौड़े। पुलिस के लोग क्षण भर के लिये रुके और महिला तथा गांव के लोगों को भद्दी सी गाली देकर चले गये। अफसोस कहें या दुर्भाग्य या कुछ और कि उन पुलिस के जवानों मे कोई भी अंग्रेज नही था। सब भारतीय ही थे जो अंग्रेजी पुलिस मे भर्ती थे।

इस घटना ने गांव वालों मे विरोध की भावना को और बढा दिया पर सब असहाय से मन मसोस कर रह गये।

बड़ों की बातों और तमाम देशभक्तों द्वारा विरोध और बलिदान की कहानियों से प्रेरित होकर गांव के कुछ बच्चों ने भी कुछ कर गुजरने की सोचा। उन्होने भी एक बाग मे बच्चों की एक मीटिंग बुलाई , इस सावधानी के साथ कि किसी को भी इसकी भनक तक ना लगे। शाम को कुल 10-15 बच्चे जुटे मीटिंग मे। क्या करना है पूरी योजना पर विचार हुआ। कुछ बच्चे तो डर गये पर 4-5 बच्चे तैयार हो गये। मीटिंग खत्म हुई। जो बच्चे तैयार नही हुए उनसे इस बात का आश्वासन ले लिया गया कि वो किसी से भी इस बात की चर्चा नही करेंगे। वो बच्चे भी इस सहयोग के लिये तैयार हो गये।

फिर एक दिन, अंग्रेजी पुलिस के साप्ताहिक गश्त का दिन का दिन था वो। योजना के अनुसार बच्चों को उसी दिन की प्रतीक्षा थी। तपती दोपहरी , जैसे ही पुलिस के घोड़ों की टक-टक सुनाई पडी 4-5 बच्चे गांव के मुख्य मार्ग के दोनो तरफ की गलियों मे छुप गये। बच्चों मे कुछ कर गुजरने का जोश भरा हुआ था। जैसे ही पुलिस के घोड़े उन गलियों के पास से गुजरे , घोड़ों और पुलिस के जवानों पर गलियों की दिशा से दना दन मिट्टी से बनी पक्की गोलियां पड़ने लगीं। गलियों मे छुपे बच्चे अपनी अपनी गुलेल से मिट्टी की गोलियां बरसाने लगे। सामान्य तौर पर बच्चे वैसे भी बाग मे या इधर उधर गुलेल से खेला करते थे , फल तोड़ा करते थे ,इसलिये उनका निशाना अचूक था। शायद इसीलिये बच्चों ने गुलेल चलाने का निर्णय लिया हो।अचानक और अप्रत्याशित इस आक्रमण से पुलिस के जवान चौंक उठे। घोड़ों को चोट लगी तो वो हिनहिनाने लगे। एक दो जवानों को कनपटी पर चोट लगी , वो घोड़ों से नीचे गिर गये।

पुलिस वालों के क्रोध का ठिकाना नही रहा। दो तीन पुलिस वालों ने बच्चों को दौड़ाया , बच्चों ने छुपने और भागने का पूरा प्रयास किया पर पकड़े गये। तब तक पूरे गांव मे ये खबर फैल गयी। जिसने भी सुना सब उसी तरफ दौड़ पडे। पकड़े गये बच्चों के परिवार के लोग बच्चों को पुलिस की गिरफ्त मे देख घबड़ा गये। पुलिस ने बच्चों को थाने ले जाने का निर्णय लिया। पुलिस छोटे छोटे बच्चों के हाथों को रस्सी मे बांधकर जब थाने ले जाने लगी , सारा गांव रो उठा। लोग इन्कलाब जिन्दाबाद , भारत माता की जय के नारे लगाने लगे। थोडी ही देर मे पूरी बात आस-पास के गांवों तक जंगल मे आग की तरह फैल गयी। दूसरे गांवों से भी लोग इकट्ठा होने लगे।

पूरे मामले के केन्द्र मे छोटे छोटे बच्चे ही थे इसलिये लोग और भी भागे चले आ रहे थे। पुलिस बच्चों को रस्सी मे बांधे हुए गांव के बाहर तक आ चुकी थी। बढती भीड़ को देखकर अंग्रेजी पुलिस के जवान भी घबरा गये। पुलिस इस बात से भी डर रही थी कि छोटे छोटे बच्चों को रस्सी मे बंधा देख उनके अधिकारी भी ना नाराज हो जांय। पुलिस के जवानो ने आपस मे मन्त्रणा की और बच्चों और उनके परिवार के लोगों को चेतावनी देकर सभी बच्चों को गांव के बाहर ही छोड़ दिया। पुलिस वाले घोडों पर सवार होकर रास्ते पर धूल उड़ाते हुए वापस चले गये। गांव के लोग भी आंखों मे आंसू और दिल मे एक नया जोश लिये सब अपने अपने घर वापस चले गये।

इस घटना ने पूरे इलाके मे अंग्रेजी हकूमत के विरोध मे होने वाले आन्दोलनों मे नयी जान फूंक दी। दूर दूर तक बच्चो के साहस और बहादुरी की चर्चा हो रही थी। उधर पुलिस के जवानो ने अपने उच्च अधिकारियों को जब पूरी घटना की जानकारी दी तो वो चकित रह गये। उच्च अधिकारियों ने भी बच्चों को छोड़ देने के निर्णय का समर्थन किया पर भविष्य मे चौकन्ना रहने का निर्देश भी दिया।

(मैं इस पूरी घटना को कथा , कहानी या कल्पना कह कर सुधी पाठको के हृदय मे उपजी देशप्रेम की भावना को कम नही करना चाहता। मैं इसे वास्तविक समझ रहा हूं , आप भी वास्तविक ही समझें। क्या फर्क पड़ता है कि ऐसा हुआ था या नही।)


( ब्रजेश श्रीवास्तव )