तुम्हारी
झुकी हुई पलकें
क्या कहती हैं
जानता हूं मैं।
तुम्हारे
शांत गहरी झील
जैसी आंखें
क्या कहती हैं
जानता हूं मैं।
तुम्हारे खामोश होंठ
चुपचाप क्या बोलते हैं
जानता हूं मैं।
इन सबको मैने
पहले भी
चुपचाप बोलते हुए
सुना है।
ये कुछ ना कहें
तब भी
बहुत कुछ
कहती हैं।
मैं परिचित हूं
इन सब से
पहले से ही।
ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव