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दयानन्द पांडे (लखनऊ वाला) : हिन्दी के छिछले समुद्र की गंदगी : सुधेंदु ओझा

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अभी कुछ दिनों पहले पल्लवी मिश्रा प्रकरण और फेसबुकिया सम्बन्धों पर लिख ही रहा था कि दिमाग में महेश कुमार ‘भोंपू’ का वाकया घूम गया। चूंकि, मुआमला ताज़ा-ताज़ा था तो मैंने सोचा इससे पहले कि यादों की पायदान में ये कहीं पीछे छूट जाय इसे भी निपटा ही दिया जाय।

मुझे पूरा विश्वास है कि इससे पहले आप मायानन्द का वृत्तान्त पढ़ चुके होंगे मायानन्द और दयानन एक ही हैं। मायानन्द बहुत मेहनती जीव हैं। बहुत परिश्रम करते हैं। बस ये समझ लीजिए कि महेश कुमार ‘भोंपू’ उनके स्वेद पुत्र हुए। बड़ी मेहनत, परिश्रम और लगन से उन्होंने महेश कुमार ‘भोंपू’ का निर्माण किया था। दोनों एक ही थैली के अट्टे-बट्टे (चट्टे-बट्टे, पुराना पड़ रहा था)। दोनों ही भीषण तरह से रसिक संप्रदाय के पोषक।

अकेली नारी दिखाई भर पड़ जाये, मुंह रूपी पाजामे से लार टपकनी शुरू।

दोनों के अपने-अपने अर्थशास्त्र और दोनों के ही अपने अपने नीतिशास्त्र।

मुझे स्मरण आता है चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है :

मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत् |

आत्मवत्सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः ||

सार यह कि अन्य व्यक्तियों की स्त्रियों को माता के समान समझें, दूसरे के धन पर नज़र न रखेँ उसे मिट्टी के ढेले की तरह समझें, उसे पराया समझें और संसार के सभी लोगों को अपनी तरह ही समझें, जो व्यक्ति ऐसी सोच-समझ रखता है वही ज्ञानी/पंडित है।

इन दोनों गुरु-चेलों के नीतिशास्त्र में इस श्लोक का अर्थ एक दम उलट था और है।

पर-नारी इनके लिए माता, बहिन, बेटी नहीं बल्कि इनके हवस की एक बोटी से ज़्यादा कुछ नहीं। मैंने कहीं लिखा हुआ पढ़ा था कि “मै मुहब्बत हूं, अकेले अपने घर में नहीं रहता” (यानि दूसरों के घर में सदैव ताक-झांक करना मेरा शाश्वत मौलिक अधिकार है।) इससे मुझे कोई रोक नहीं कर सकता।

दूसरे का धन इनके लिए ‘लोष्ठवत’ यानि मिट्टी के ढेले के समान हरगिज़ नहीं। इनका बस चले तो हर किसी के धन को मिट्टी का ढेले समझ अपनी झोली में भरते चले जाएँ।

श्लोक की जो अंतिम पंक्ति है, जिसका सार यह है कि संसार के सभी लोगों को अपनी तरह ही समझें, जो व्यक्ति ऐसी सोच-समझ रखता है वही ज्ञानी/पंडित है। इस पर लगता है कि ये दोनों गुरु-चेले कुछ-कुछ एकमत से हैं, वह भी ट्विस्टेड अर्थ के साथ।

अब आप पूछेंगे कि यह ट्विस्टेड अर्थ क्या बला है?

तो ट्विस्टेड अर्थ जानने केलिए मैंने मायानन्द के पुराने जानकारों से संपर्क किया।

सब ने एक ही स्वर में मुझ से पूछा “अरे वो साला अभी ज़िंदा है क्या?”

मैंने जवाब दिया “हाँ!!”

“अरे उस साले से बच के रहना। महा धूर्त किस्म का काइयाँ इंसान है।“ उधर से यह पारिभाषित टिप्पणी हासिल हुई।

अब बात आती है ट्विस्टेड अर्थ की : तो ट्विस्टेड अर्थ यह हुआ कि जिस व्यक्ति के बारे में लोगों की ऐसी राय है वह संसार के सभी लोगों को धूर्त, काइयाँ, कमीना, झूठा, मक्कार और जाने क्या-क्या समझता और लिखता है। सार यह कि वह सब को अपने जैसा ही समझता और ‘मानता’ है।

दयानन्द के पिछले अध्याय में मैं उसके ‘मान लेने’ को ही उसके द्वारा सत्य समझे जाने के बारे में लिख ही चुका हूँ।

अब आते हैं मायानन्द पुराण के महेश कुमार ‘भोंपू’ अध्याय पर।

मायानन्द और महेश एक ही आत्मा से उत्पन्न दो जीव हैं जिनका आचार-विचार एक सा है। ये गुरु-चेले भी ‘पिस्सू’ कीट की दो हज़ार जतियों के हिस्से हैं।

पूरे विश्व पर इन्हीं माया और महेश का एक छत्र राज्य है।

महेश को रात-रात भर जागकर सिंगल मदर और बोल्ड लेखिकाओं को ताड़ते रहने का भयानक चस्का है। अब चस्का तो चस्का ही रह जाता यदि उसे बढ़ावा न मिलता। भला हो इस फेसबुक का यहाँ ओपशंस की कमी नहीं है। बस आपको एक्सप्लोरर भर बनना है, एक नई दुनिया आप के सामने बसने को तैयार है। बस आप खूबसूरत शब्दों में अपनी बात रखिए बहुत रातकी रानियाँ जो महकने और रात को महकाने को तैयार हैं।

मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि किसी भी महेश के इस चस्के के पीछे शायद उसकी पत्नी का क्रमिक रूप से अस्वस्थ रहना भी हो सकता है। इस महेश के अनुसार, उसकी पत्नी कैंसर जैसे जघन्य रोग से शैय्यारूढ़ है।

प्रकाशक के चरण-चंपू से प्रकाशित किताबों से अब वह स्वयं सिद्ध नव-युगीन मस्तराम बन गया है जिसे युगलबंदी केलिए अङ्ग्रेज़ी की शोभा डे उर्फ शोभा किलाचंद जैसी लेखिका की तलाश है।

गुरु मायानन्द की तरह उसका भी ‘मानना’ है कि जिस दिन उस की युगलबंदी पूरी हो जाएगी और उसे कोई शोभा डे जैसी अभिन्न महिला लेखिका साथी मिल जाएगी वह हिन्दी का धूमकेतु बन जाएगा।

लोग कहते हैं कि वह महिला लेखिकाओं पर डोरे डालता है, मैं इस कथन से भिन्न राय रखता हूँ। मेरे अनुसार, वह नई संभावना की तलाश में लगा हुआ है। नया टेलेंट खोज रहा है। कोई आश्चर्य भी नहीं कि वह अपने इस प्रयास में कामयाब भी हो गया हो। नथिंग इस इम्पॉसिबल।

अभी मैं यह सब लिख ही रहा हूँ कि किसी जानकार का फोन आगया।

फोन अटेण्ड कर के आता हूँ।

तब तक आप इसी चैनल पर बने रहिए।

ओह! आप को देर हो गई होगी।

दरअसल यह फोन राम अरोरा जी का था।

वे आधुनिक हिन्दी पत्रकारिता चलते-फिरते एनसाइक्लोपीडिया हैं। कम से कम उन्नीस सौ सत्तर के बाद से लगभग उन्नीस सौ नब्बे तक के तो अवश्य ही।

उनका फोन आने का मतलब है आप एक से सवा घंटे तक दीन-दुनिया से कट-आफ हो जाएँ। फिर वे आपको साठ और सत्तर के दशक की पत्रकारिता की मनोरम और रंगीन झलकियाँ दिखा लाएँगे। धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, राजेंद्र अवस्थी, राजेंद्र माथुर, राजेंद्र यादव, मनोहर श्याम जोशी, अरविंद कुमार, एसपी सिंह, कन्हैया लाल नन्दन, रूसी करंजिया, मंटो सब का ऐसा जीवंत वर्णन कि आप अपने सब जरूरी काम भूल जाएँ। उनका ही फोन था।

अब एक ताज़ी खबर और सुन लीजिए…..यह आप केलिए ही है।

जस्ट ब्रेकिंग न्यूज़ : कुछ पत्रकार की तरह साहित्य लिखने वाले अब सिंगल मदर्स को भी अपनी कुंठा के निशाने पर लेने लग गए हैं। लेखिका एटम पावर सिंह और बीताश्री को लेकर भी कुंठा-वमन हो रहा है।

यह हिन्दी साहित्य का छिछला महासागर है जिसमें दूर-दूर तक, बहुत दूर तक सड़े-गले व्यक्तिगत सम्बन्धों की गंदगी को साहित्य के नाम पर परोसने की कोशिश हो रही है। पर यह कोशिश नई नहीं है। फूल कुमारी भारती हों या सहेली फूल कुमारी सभी रेत की मछलियाँ बन कर साहित्य में तड़प रही हैं।

हिन्दी साहित्य का पाठक गत सदी के तीस और चालीस दशक का रचा हुआ साहित्य तलाश रहा है पर उसे मिल रहा है आज कल के लेखक-लेखिकाओं का जिया हुआ इतिहास।

खैर, यह छिछला समुद्र है। यहाँ इस तरह की गंदगी मिलती ही रहेगी। ऐसा मुझे पूरा यकीन है।

अंत में, फेसबुक पर नमूदार मायानन्द, महेश जैसे पथिकों का जिनका रास्ता और लक्ष्य ही अद्भुत है……उन्हें प्रणाम, उनके बहाने कुछ कहने का अवसर प्राप्त हुआ……

वैधानिक चेतावनी : इस लेखक को पढिए पर करिए अपने मन की।

सादर,

सुधेन्दु ओझा

9868108713/7701960982