यूँ ही…….काणे, लंगड़ा, नारी काया तृषित, पतित दयानन्द और मेरी सृजनात्मकता : गंदी औरतें तथा अन्य प्रकरण : सुधेंदु ओझा

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गंदी औरतें-1

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गंदी औरतें-1, कहानी लिख रहा था।

कहानी की शुरुआत भर लेखक करता है। शेष कहानी और उसके पात्र स्वतः करते हैं।

मैंने सोचा था कि कहानी संक्षिप्त लिखूँगा, किन्तु कहानी पसरती चली गई। लगभग 10500 शब्दों के पार।

प्रमुख समाचारपत्रों में कहानियाँ लगभग 1000-1200 शब्दों में ही छपती हैं। तो हम यहाँ से आउट हो गए।

जनसत्ता में दो कहानियाँ, सूर्यनाथ सिंह जी ने ली थीं, दोनों में 2500 से 3000 हज़ार शब्द थे।

भाई सूर्यनाथ सिंह जी का अनुरोध था कि इन्हें 1000 से 1200 शब्दों में सीमित कर दूँ।

यह मेरे लिए असंभव हुआ फिर भी उन्हें 1500-1600 शब्दों तक ले आया।

तो उन्हों ने उनको प्रकाशित किया।

धन्य हैं लघुकथा वीर।

हमें लघुकथा लिखनी ही नहीं आई।

500 शब्द, परिदृश्य का निर्माण नहीं, शब्दों का आडंबर नहीं, और एक संदेश। लघुकथा के शायद यही सर्वमान्य नियम हैं।

खैर, गंदी औरतें-1 पूरी होने को ही थी कि नखलऊ के काणे, लंगड़े, नारी काया तृषित, पतित दायाँनन्द ने मेरे बारे में अनाप-शनाप लिख दिया, तो हम भी ठहरे यूपी के। हमारे सामने पत्थरबाजी करोगे तो बुलडोज़र झेलोगे।

अब मुझे सारा ध्यान लगा कर अपना बुलडोज़र स्टार्ट करना पड़ा।

दिल्ली में अरविंद कुमार के पास डेली वेजेस पर प्रूफ रीडिंग करने वाला, जिसके बारे में जाने कितना सच, जाने कितना झूठ प्रचलित है कि 1980-85 में दस रुपये देकर दिल्ली में कोई भी उसके साथ कभी भी कुछ भी कर सकता था, आजकल मठाधीश बना हुआ है।

‘मुठिका एक महा कपि हनिहीं’ प्रसाद पाकर अभी तो वो शांत लग रहा है।

पर उस पर आक्रोश निकालते हुए अच्छा काम यह हुआ कि मुझे अपने पुराने समय में किए गए काम की याद आ गई।

‘का चुप ताकि रहा बलवाना’ मैं एकाग्र हो कर पुराने किए गए काम को संकलित करने में लग गया।

शुरुआत गीत ऋषि नीरज जी से की जिन को मैंने 2005-2006 में बहुत बार कैमरे में लिया था।

मैंने कैमरा, कैमरामैन श्री दिनेश गुसाईं (जो यहाँ फेसबुक पर भी मेरे साथ हैं) और स्टाफ को अपनी सीएलो कार में लेकर अलीगढ़ तक की कई यात्राएं की थीं। उन रेकोर्डिंग्स को बहुत श्रम खर्च कर डीवी से एमपी4 में कन्वर्ट करवाया था…..

उसमें, नीरज जी मिले, रवीन्द्र जैन जी मिले, श्रीकांत वैश्य जी मिले। और भी कई कलाकार मिले हैं। उन्हें यूट्यूब केलिए तैयार करने का अवसर मिला।

गंदी औरतें-2

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दायाँनन्द वध के बाद फिर गंदी औरतें-2 लिखने बैठा।

यह कहानी अभी तक 19000 शब्दों के पार चली गई है, सुरसा की तरह फैलती ही जा रही है।

इसीलिए मैं लघुकथा लेखकों (भाई अशोक जैन जी, वीरेंद्र वीर जी, विजय कुमार जी, अशोक कुमार जी, सुश्री मिन्नी मिश्रा जी, व्यग्र पाण्डेय जी, सुश्री शील निगम जी, सुश्री सत्या शर्मा कीर्ति जी, सुश्री इन्दु सिन्हा जी इत्यादि…इत्यादि) को प्रणाम करता हूँ, कि उनकी जैसी कला का अभाव है हम में।

इस लंबी कथा की परिणति शायद उपन्यास में हो जाए।

यह आभासी दुनिया की विसंगति पर केन्द्रित है जहां चालीस-बयालीस वर्ष का एक आदमी आभासी दुनिया के सहारे छियासठ वर्षीय महिला से टकरा जाता है जो उसकी प्रेमिका बन कर जीने-मरने की कसमें खाने लगती है।

मुख्य कथा के साथ अन्य कथाएँ भी चलती हैं और चल रही हैं…….देखिए कहाँ तक पहुँचती हैं।

संपर्क भाषा भारती जुलाई 22 अंक

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संपर्क भाषा भारती का जुलाई अंक तैयार होना है। अब जो सामग्री प्राप्त होगी उसका उपयोग भविष्य में किया जाएगा।

27-28-29 तक, यही लक्ष्य है।

पत्रिका का अंक निकालने के बाद फिर गंदी औरतें-2, का लेखन शुरू करूंगा।

नखलऊ का दायाँनन्द

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यदि बीच में दायाँनन्द असुर न टूट पड़े।

दायाँनन्द के लायक ढेर सारी सामग्री है, मायावती काल में वह हाथी पर सवार था, अखिलेश के समय में साइकिल पर अब बाबा जी के बुलडोज़र पर। पर यह बात योगी जी के पीआरओ साहब के संज्ञान में लानी पड़ेगी कि यह पाखंडी मामा मारीच है जिसने गेरुआ ओढा हुआ है ताकि उसका सरकारी आवास खाली न करवाया जा सके।

रात-रात भर महिला लेखकों को फोन खटखटाने वाले इस दुश्चरित्र के अगले घात का इंतज़ार है…..

जब भी उसका घात मिलेगा, यहाँ से प्रतिघात तैयार, इहाँ कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं जे तर्जनी देखि डर जाहीं……

न्यूज़ चैनल NEWZLENS

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इधर न्यूज़ चैनल (NEWZLENS) का जो पायलेट तैयार हुआ उसे मैंने अस्वीकार कर दिया है। क्योंकि उसमें जो मैं समाचार पढ़ रहा हूँ उसमें जर्क है। स्टूडिओ में लाइट भी संतोषजनक नहीं लगी, शैडो आ रही थी।

अभी उस पर और काम होना है….

दो नई पुस्तकें : मौत का सन्नाटा और ताकि सनद रहे का प्रूफ

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प्रकाशक महोदय ने जुलाई में मेरी तीन पुस्तकें लाने को कहा था।

दो पुस्तकों के प्रूफ प्राप्त हो गए हैं।

“मौत का सन्नाटा” जासूसी उपन्यास में 228 पृष्ठ है।

“ताकि सनद रहे” पांचजन्य, दैनिक आज, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट तथा देश के अन्य समाचारपत्रों में प्रकाशित मेरे भारतीय राजनीति पर प्रकाशित संपादकीय अग्रलेखों का संकलन है। जो कि पत्रकारिता को समर्पित है

यह पुस्तक भी 180 पृष्ठ के लगभग की है।

इसका प्रूफ पठन, गंदी औरतें-2 कहानी की समाप्ति के बाद……

आज बस इतना ही….

सादर,

सुधेन्दु ओझा

7701960982/9868108713

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