दशानन की महिमा

रावण जलता है और पूरे देश में हर साल जगह-जगह जलता है। पिछले एक-दो साल कोरोना के कारण गिनती में बहुत कम रावण जल पाए क्योंकि हम सब रावण से भी बड़े एक शत्रु को जलाने में व्यस्त रहे जो गिनती में असंख्य थे। पिछली कसर इस बार पूरी हो जाएगी, ऐसी उम्मीद है। इस असुर का वध हमें हर साल करना पड़ता है क्योंकि अब हमें दृढ़ विश्वास हो चुका है कि वह कभी नहीं मरने वाला। दरअसल हम यह पूर्णतः बिसुरा चुके हैं कि दस सिर वाले इस राक्षस को उसकी नाभि में तीर मारकर इसे खत्म किया जा सकता है। उस पर रावण के शुभचिंतकों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती चली जा रही है। उन्हें रावण का वध अखरता है। अखरना भी चाहिए क्योंकि रावण उन्हीं की तरह महापंडित, महाज्ञानी था। अतः हो सकता है कि आने वाले वर्षों में रावण-दहन की प्रथा ही समाप्त हो जाए। दशहरे के दिन रावण की पूजा हो। यों तो कर्नाटक के कोलार में सालों से रावण का पुतला नहीं जलाया जाता बल्कि वहां नवरात्रों के नौ दिनों तक लंकेश की पूजा होती है परंतु यह परंपरा अब अन्यत्र भी देखी जाने लगी है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में रावण की उनके परिवार सहित बैंड-बाजों के साथ भव्य शोभायात्रा बड़ी धूमधाम से निकाली जाती है।


वैसे रावण के बतलाए मार्ग पर चलने वाले हमारे देश में अनगिनत लोग हैं जिनके बारे में आए दिनों चर्चाएं होती रहती हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो रावण को भी पीछे छोड़ जाते हैं। सच है कि रावण सिर्फ त्रेता युग में नहीं बल्कि हर युग में होता है।


इधर एक फिल्म ने रावण पर बावेला खड़ा कर दिया है। उसमें लोगों को रावण का वीभत्स रूप पसंद नहीं आया। उनका मानना है कि रावण रावण की तरह शालीन दिखे और पौराणिक गेटअप में हो। माथे पर त्रिपुंड हो, चलने-हंसने का पारंपरिक स्टाइल हो। लिहाजा फिल्म का विरोध होने लगा है। अब उन महानुभावों को कौन समझाए कि रावण किसी भी रूप में, कहीं भी हमारे समाज में प्रकट होकर अपना कर्मकांड कर सकता है। देश भर में इतने रावण गुप्त रूप से विचर रहे हैं, क्या उनका कोई विशेष परिधान या हुलिया है? जाहिर है कि अब रावण को विशेष अहमियत दी जाने लगी है। यही हाल रहा तो एक दिन देश में रावण जयंती भी मनायी जाने लगेगी और उसके गुणों पर चर्चा हुआ करेगी। रावण के दुर्गुणों को अपनाने और उसे अपने जीवन में आत्मसात करनेवाले उसके सद्गुणों का यों बखान किया करेंगे – ‘सारस्वत ब्राह्मणपुलस्त्य ऋषि-पौत्र और विश्रवा का पुत्र रावण भगवान शिव का अनन्य भक्त, प्रकांड विद्वान, कुशल राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा, अत्यंत बलशाली, विभिन्न शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता व व्याख्याता तथा महाज्ञानी था।’

– रतन चंद ‘रत्नेश’

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