भुखमरी में अव्वल

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक भूख सूचकांक यानी कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी हुआ है जिसमें भारत की स्थिति पिछले वर्ष की तुलना में और भी अधिक बिगड़ी है। हमारे लिए इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होनी चाहिए। जिस देश में खा-पीकर अघाए लोग भी भूखे हों, वहां का यह आंकड़ा चिंताजनक नहीं। जिन्हें अच्छा-खासा वेतन मिलता है, सुविधा-संपन्न हैं, खाने-पीने की कोई कमी नहीं, कई-कई बंगले-गाड़ियां हैं, उनके भी भूखे होने के प्रमाण जब-तब मिलते रहते हैं। लाखों-करोड़ों की रिश्वत लेने के बाद भी उनकी भूख कभी नहीं मिटती बल्कि और भी अधिक बढ़ती चली जाती है। ऐसे में इंडेक्स के आंकड़े में हमारा सुधार होना नामुमकिन है। भ्रष्ट लोगों की चल-अचल संपत्ति में लगातार वृद्धि इसी भूख का परिणाम है। अतः लोगों को मन में यह संदेह नहीं पालना चाहिए कि हम भूख के मामले में नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों से पीछे हैं। कई लोगों को यह बात हजम नहीं हो रही है कि भला भूख के मामले हमारे पड़ोसी मुल्क हमसे कैसे आगे हो सकते हैं और वे इस इंडेक्स को ही फर्जी करार देकर सिरे से खारिज कर रहे हैं। विपक्ष भी सरकार को कठघरे में खड़ा करने पर आमादा हो गया है। वे खामख्वाह बात का बतंगड़ बना रहे हं जबकि पहले उन्हें अपने गिरेवान में झांक कर देख लेना चाहिए कि वहां कितने भूखे छुपे पड़े हैं और मौका मिलने पर क्या-क्या खा रहे हैं।

सरकार ने तो साफ तौर पर कह दिया है कि देश की छवि को खराब करने का प्रयास किया जा रहा है। आंकड़ों से भी यह स्पष्ट होता है कि इसमें हमारे पड़ोसी मुल्कों का हाथ है।

दरअसल हमारा देश और समाज कुछ खास किस्म के भूखे लोगों से भरा पड़ा है। दहेज लेनेवालों की भूख घटने के वजाय बढ़ती चली जा रही है। रिश्वतखोरों की भूख इतनी संक्रामक है कि उसे आंका ही नहीं जा सकता। उनकी भूख मिटाना असंभव है। किस्म-किस्म के भूख के कारण हमारी स्थिति पड़ोसी मुल्कों के वनिस्पत बदतर है तो कोई गलत नहीं। इस मामले में हम रैंकिंग मे इस बार तीसरे से छवें पायदान में आ गए हैं। देश में भूखों का यही हाल रहा तो हमें और भी नीचे गिरने से कोई नहीं बचा सकता। गरीब की भूख तो मिटायी जा सकती है परंतु गले तक खाकर बदहजमी के शिकार हुए लोगों की भूख कभी नहीं मिटायी जा सकती। उनका मानना है कि भूखी है ज़मीं भूख उगलती रहेगी, ये भूख मेरे पेट में पलती रहेगी। हमारे यहां ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो अन्न की बर्बादी को अपना नैतिक कत्र्तव्य समझते हैं। ऐसे लोगों को शादी-ब्याह जैसे समारोहों में देखा जा सकता है। भूख से बच्चे बिलखते है न जाने कितने और पानी में बहा देते है वे दाने कितने। कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे बच्चे और गरीब लोगों की हमारे देश में कमी नहीं है जिन्हें दो जून की रोटी बड़ी मुश्किल से मिलती है परंतु इस मामले में हम श्रीलंका और पाकिस्तान से कहीं बेहतर हैं। जाहिर है ग्लोबल इंडेक्स जारी करने वाले कयामत की नज़र रखते हैं। वैसे भी हमारे यहां भूख समस्याओं की श्रेणी में नहीं आता है।


रतन चंद ‘रत्नेश’

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