संपादकीय व्यंग्य की पुस्तक “तनिक सनद रहे” के दूसरे प्रूफ को पढ़ते हुए विस्मय में पड़ गया कि यह ‘संपादकीय व्यंग्य’ क्या होता है?
व्यंग्य तो व्यंग्य होता है।
फिर यह संपादकीय व्यंग्य क्या है?
आइये आज इसी पर चर्चा कर लेता हूँ।
राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लेखन तो वर्ष 1979-80 से ही चल रहा था। वर्ष 2010 के लगभग बहु प्रतिष्ठित समाचारपत्रों के लिए नियमित संपादकीय आलेख लिखने लगा।
यह वह दौर था जब राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में नरेंद्र मोदी जी का आगमन नहीं हुआ था। उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में ही देखा जाता था।
स्वयं भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष में सर्व श्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह, अरुण जेटली, कालराज मिश्रा, सुश्री उमा भारती, सुषमा स्वराज जैसे व्यक्तित्व मौजूद थे ऐसे में 2014 के चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी का नाम अभी प्रस्तावित नहीं हुआ था।
आडवाणी जी इस उम्मीद में थे कि पार्टी के नेतृत्व की बागडोर उनके सुपुर्द ही की जाएगी।
यह वह दौर था जब यूपीए-2 की सरकार भ्रष्टाचार तथा आय के भ्रष्ट बंदर बाँट में बुरी तरह आसन्न थी।
• मनमोहन सिंह ने सरकारी बजट से जनता के पैसे को बांटते हुए सोनिया गांधी संचालित राजीव गांधी फाउंडेशन को सौ करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी थी।
यह ट्रस्ट चीन से उसके पक्ष में अध्ययन रिपोर्ट प्रकाशित करने की एवज़ में तीन सौ करोड़ रुपये पहले ही हासिल कर चुका था। अमरीका में नियम है कि यदि आप अमरीका के नागरिक होते हुए किसी अन्य देश की हिमायत के लिए कार्य करते हैं तो आपको FARA (फ़ोरेन एजेंट रेजिस्ट्रेशन एक्ट) के तहत विदेशी एजेंट के तौर पर पंजीकृत कर लिया जाएगा।
• सोनिया गांधी और उनके भ्रष्ट सहयोगियों ने कॉंग्रेस से 90 करोड़ का ऋण दिलवा कर नेशनल हेराल्ड की हजारों करोड़ की संपत्ति अपनी कंपनी के नाम करवा ली थी।
• कोयले की खदानें बिना पैसे लिए अपने उन करीबियों को बाँट दी गईं जिन्हों ने बस इतना भर लिख कर दे दिया कि वे पावर-प्लांट लगाएंगे। इन करीबियों ने उन खदानों को ऊंचे मूल्य पर आगे बेच कर अरबों रुपये बना लिए।
• 2जी/3जी में कनमोजी, ए राजा, मुरसोलीमारन को टेलकॉम क्षेत्र से उगाही पर बैठा दिया गया था।
• शीला दीक्षित और सुरेश कलमाड़ी ने 2014 के राष्ट्रमंडलीय खेलों के भ्रष्ट आयोजन से अरबों रुपये इकट्ठे करने का बीड़ा उठाया था।
• लूट का यह नग्न नर्तन केंद्र तक ही सीमित नहीं रहा था, यूपीए समर्थक राज्य सरकारों को खुली लूट का लाइसेन्स दिल्ली सरकार द्वारा दिया जा चुका था। ऐसा लग रहा था कि अगली सुबह होगी ही नहीं, जितना लूट सको लूट लो।
महाराष्ट्र में अशोक चवाण का आशीर्वाद कॉम्प्लेक्स घोटाला, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह, अखिलेश, शिवपाल, मोहम्मद आजम खान का नग्न भ्रष्टाचार अपने पूरे यौवन पर था।
अखिलेश ने आजम खान को कुम्भ मेले का इंचार्ज बना कर खूब धन लूटा।
उत्तर प्रदेश की कोयलारी से अवैध कोयला लेकर निकलने वाले ट्रकों से जबरिया अरबों रुपये की उगाही की गई। सांस्कृतिक मंत्रालय के पैसों से सैफई में बंबइया ठुमके लगे।
खनन मंत्री प्रजापति पर तो महाकाव्य लिखा जाना बनता है।
लखनऊ का गोमती विकास प्रकरण हो, आगरा-लखनऊ राजमार्ग हो कुल लूट ही लूट।
किसी पत्रकार, लेखक के लिए सही मायनों में लिखने के लिए बहुत कुछ था।
पर लिखा नहीं जा रहा था।
क्यों?
क्योंकि पत्रकारों का एक बहुत बड़ा तबका इन राजनीतिज्ञों से पोषित हो रहा था।
मुलायम सिंह ने लखनऊ में पत्रकारों को मैनेज करने केलिए अपनी भ्रष्ट कमाई का एक हिस्सा इनकाइ अंटी में डाल दिया था। तरह-तरह के पुरस्कार और पेंशन, सरकारी आवास विदेशी यात्राएं, पोस्टिंग, ट्रांसफर। पत्रकार इतने पर ही बिके हुए थे।
समाचारपत्रों में सरकारी विज्ञापन यह सुनिश्चित करते थे कि अखबार की हर हेडलाइन सरकार के मुख्यमंत्री से सजे।
पहले पन्ने पर दाँत चियारते हुए शिवपाल सिंह की फोटो हो।
कुछ-कुछ सूत्र भ्रष्टाचार उजागर कर रहे थे, पर कपिल सिब्बल, खुर्शीद आलम खान और पी चिदम्बरम जैसे नेता उन पर पर्दा खींचने में आगे थे।
ऐसे में मैंने निर्णय किया कि अपने संपादकीय आलेखों में इन मुद्दों को अवश्य उठाऊंगा किन्तु बहुत सब्टलिटी के साथ।
ऐसा आरोप है कि उत्तर प्रदेश से निकलने वाले ‘डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट’ और ‘जनसंदेश टाइम्स’ समाचारपत्रों ने तो जैसे भ्रष्टाचार को पोषित करने की सुपाड़ी ही ले रखी थी।
‘जनसंदेश टाइम्स’ के वाराणसी ब्यूरो और लखनऊ के संपादकों की उस समय की फेसबुक पोस्ट पढ़ लीजिए, मेरी बात की पुष्टि हो जाएगी।
उनके लखनऊ वाले संपादक को उन्हीं के सजातीय दरोगा ने जलील किया था, सहानुभूति हमारी भी रही थी, हालांकि वे इसके लायक थे नहीं।
भारत ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक किया था तो लखनऊ के एक धर्म-निरपेक्ष संपादक को बहुत दुख हुआ था, बोले “ओझा जी! देखिएगा यह मोदी देश को बर्बाद करके छोड़ेगा। बताइए सर्जिकल स्ट्राइक की क्या जरूरत थी? और मैं तो यह कहता हूँ! यह सब झूठ है, दुष्प्रचार है।“ मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि देश की उस पहली सर्जिकल स्ट्राइक की कवर स्टोरी ‘पांचजन्य’ पत्रिका केलिए मेरे ही लिखी हुई थी।
2014 में भ्रष्टाचार की गिरती दीवार से परेशान पत्रकारों का यह तबका 2019 में पीठ झाड़ कर फिर उठ खड़ा होना चाहता था।
सब मोदी सरकार के अंतिम दिन गिन रहे थे।
‘जनसंदेश टाइम्स’ के संपादक द्वय तो कुछ मत पूछिए कितने तरन्नुम से मोदी सरकार के विदाई गीत गा रहे थे, खैर वे सभी गीत उनकी रुदाली में बदल गए।
मुझे संतोष है कि मैंने इन सभी अखबारों में अपनी बात लिखी, किन्तु महीन तरीके से लिखी।
इसी से ‘संपादकीय व्यंग्य’ उद्भूत हुआ।
लगभग दो सौ पृष्ठों की इस पुस्तक में मेरे 34 संपादकीय आलेखों का संग्रह है।
‘तनिक सनद रहे’, ‘मौत का सन्नाटा’ (उपन्यास), ‘गंदी औरतें’ (उपन्यास) पुस्तक-त्रयी, प्रलेक प्रकाशन से आ रही है।
प्रकाशित होते ही आपसे इनके खरीद करने का अनुरोध करूंगा।
सादर,
सुधेन्दु ओझा
7701960982/9868108713