आमूमन तौर पर मैं बहुत काहिल व्यक्तियों में से एक हूँ। काहिल को कुछ डिग्री से बढ़ा कर आप वह भी कह सकते हैं जिससे काहिल की तुक मिलती है। दर असल, मुझ से आयोजनों से कुछ-कुछ परहेज सा होता है। यही कारण है कि शादी-बियाह के आयोजनों की मुंह चियारे फोटो नहीं डाल पाता।
अभी पिछले दिनों एक अनन्य मित्र के लड़के की बारात में तुगलाकाबाद जाना हुआ।
आयोजन स्थल जितना दूर था, मित्र उसके उलट, बहुत नजदीक।
रात की हाई-बीम सर्च लाइट टाइप रोशनी में कार चलाने से बचता हूँ। उन्हों ने कहा बस है।
मैंने पूछा वापस आएगी?
कहे, साढ़े दस, ग्यारह बजे रात वहाँ से वापस चल देगी।
बस के चलाने का समय सात बजे शाम का बताया गया।
हम साढ़े छह बजे बस में बैठ गए। नसुड्ढी बस रात सवा आठ बजे हिली।
दिल्ली के ट्रैफिक की साँप-सीढ़ी में बस लड़की वालों के पंडाल से एक किलोमीटर दूर रात साढ़े नौ बजे पहुंची।
बस आगे की न पूछिए, बस तो वापस आनी ही नहीं थी।
मित्र ने अन्य किसी के साथ वापस घर भिजवाने की महती कृपा की तो रात दो बजे सकुशल घर पहुंचे।
हाँ! तो मैं कह रहा था कि मैं इस मामले में काहिल और जाहिल दोनों ही हूँ। शादी-बियाह में गया तो एक-आध रोटी और गले के नीचे फिसलने वाली चुनिन्दा मिठाइयाँ खा लीं तो वापस घर लौटने का मन होता है।
अपनी वह आदत ही नहीं है कि कार-कार में घूम-घूम कर अंगूरी उँड़ेली जाय।
खैर, साहित्य अकादमी के मेले में ऐसा कुछ भी होने का भय नहीं था पर फिर भी।
कार पार्किंग आसानी से बिल्डिंग में ही मिल गई। अपराहन दो बजे मैं प्रलेक प्रकाशन के स्टाल पर था। जितेंद्र पात्रो मिले। उन्हों ने पैर छू कर आशीर्वाद लिया। कुछ देर वहाँ बैठने के बाद अन्य स्टाल को भी देखने की इच्छा जता कर जितेंद्र पात्रो से इजाज़त ली।
इस मुलाक़ात के दौरान जितेंद्र पात्रो ने बताया कि दयानंद पाण्डेय और शशि मिश्रा से उन्हें दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। इस पर फिर कभी।
उनसे अगला ही स्टाल भावना प्रकाशन का था। उसके बाद अद्विक प्रकाशन के अशोक गुप्ता जी से मुलाक़ात हुई, आलोकपर्व प्रकाशन के आलोक शर्मा से मिला। जीएस पब्लिशर्स, विजया बुक्स, नयी किताब प्रकाशन समूह, सामयिक प्रकाशन, प्रभात प्रकाशन, किताब घर, वाणी प्रकाशन, राजकमल प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत सरकार का प्रकाशन विभाग, सब स्टाल पर जाना हुआ।
पुस्तक एक भी नहीं खरीदी।
नई पुस्तकों पर चर्चा अवश्य हुई।
एक प्रकाशक महोदय मेरी दो पूर्व प्रकाशित पुस्तकों को तुरंत छापना चाहते हैं इन पुस्तकों के अब प्रिंट उपलब्ध नहीं हैं। कल देने जाऊंगा।
मेले में प्रोफेसर दिविक रमेश जी से मुलाक़ात हुई।
लालित्य ललित भी मिले।
कुछ और लोग भी मिले जिनमें से एक राजकमल हैं। उन्हों ने मेरे पूर्व मित्र और जनसत्ता के कार्टूनिस्ट रहे स्वर्गीय चंदर के साथ फाइन आर्ट कॉलेज में डिग्री पूरी की थी।
उन्हीं के साथ श्री हरि कृष्ण यादव जी से मुलाक़ात हुई जो ‘जनसत्ता’ से रिटायर हुए हैं। उन्हों ने बताया कि जनसत्ता में छपी मेरी दो कहानियों के चेक उन्हों ने अपने पास सुरक्षित रखे थे। मैं चेक लेने ही नहीं गया था। उन्हों ने आश्वासन दिया है कि वे उसे ढूंढवाने की व्यवस्था करेंगे।
यादव जी ने भी प्रकाशन संस्थान खोल लिया है।
एक सज्जन को सीढ़ियों से उतरने में दिक्कत हो रही थी मैंने अपना कंधा आगे कर दिया।
ये जगदीश प्रशाद वर्मा जी हैं। 94 वर्ष के हैं। उनके बड़े भाई 104 वर्ष के हैं और अभी जीवित हैं। मुख्य रूप से सुनार पेशे से हैं बता रहे थे उनहों ने 25 रुपये तोले के हिसाब से सोना खरीदा था और आठ आने तोले चांदी।
पुस्तकों के शौकीन हैं। दिल्ली के मॉडल टाउन में रहते हैं। पर अब ऊंचा सुनते हैं।
कुल मिला कर मेले में उत्फुल्ल समय बीता।
शाम साढ़े छह बजे वापस घर पहुँच गया हूँ।
कल श्री शिव-राम मंदिर रामाविहार जाऊंगा। वहाँ दूसरी मंज़िल पर चार कमरे डलवा रहा हूँ।
पुस्तक मेले में जाने से ऊर्जा मिली है।
कई पुस्तकों को प्रकाशक चाहते हैं।
उन्हें पूरा करना लक्ष्य है।
समय-समय पर जानकारी देता रहूँगा
पुस्तक मेले के कुछ चित्र आपके लिए।
सादर,
सुधेन्दु ओझा
9868108713/7701960982