रवीन्द्र कान्त त्यागी जी के दो उपन्यासों का लोकार्पण, राजनगर गाजियाबाद में

19 October 2021  · 

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रविवार दिनांक 17 अक्तूबर 2021 को श्री रवीन्द्र कान्त त्यागी जी ने अपने दो उपन्यासों (1) पिघलती मिट्टी व (2) वंश बेल में दंश का लोकार्पण कार्यक्रम राजनगर, गाजियाबाद में आयोजित किया।

इससे पूर्व आजकल के प्रचलन के अनुरूप इन पुस्तकों का लाइव, वर्चुअल लोकार्पण भी हो चुका था। इस दौरान दिल्ली के गार्गी कॉलेज में हिन्दी के प्राध्यापक श्रीयुत श्रीनिवास त्यागी जी ने “फिसिकल” लोकार्पण का यह कहते हुए सुझाव दिया कि इसी बहाने हमें मिष्ठान्न की प्राप्ति हो जाएगी।

इस सुझाव को श्री रवीन्द्र कान्त त्यागी जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था।

आयोजन की तैयारी काफी दिनों से चल रही थी। शंभू दयाल कॉलेज की प्राध्यापिका सुश्री डॉ पूनम सिंह संयोजन का दायित्व निभा रही थीं।

आयोजन वाले दिन उन्होंने सूचित किया कि कार्यक्रम “शार्प तीन बजे” शुरू हो जाएगा क्योंकि मुख्य अतिथि श्री विभूति नारायण राय जी (सेवा-निवृत्त आईपीएस एवं कुलपति) समय के विशेष पाबंद हैं।

तत्पश्चात, त्यागी जी का भी फोन आया और उन्होंने जानना चाहा कि मैं किस समय पहुंचूंगा?

मैंने उनसे पूछा कि ‘क्या मैं आधे घंटे पहले पहुँच जाऊँ?’

उन्होंने कहा ‘मैं दो बजे आयोजन स्थल पर पहुंचूंगा, आप तीन बजे तक पहुँच जाइए।’

दिल्ली में शनिवार से ही रुक-रुक कर तेज वर्षा हो रही थी।

मैं घर से दो बजे निकला। मेरे घर से आयोजन स्थल अजनारा इंटेगृटी, लगभग 35-40 किलोमीटर दूर था और रास्ता भी अपरिचित।

रास्ते भर में भारी वर्षा को झेलना पड़ा। चूंकि दिन का समय था इस लिए विशेष दिक्कत नहीं हुई और ठीक दो बजकर अट्ठावन मिनट पर मैं आयोजन स्थल पर त्यागी जी के साथ था।

आयोजन स्थल की कार-पार्किंग बेसमेंट में थी और बेसमेंट पानी से भरा था।

आयोजन इसी बिल्डिंग के क्लब में था। मुझे क्लब के सामने ही पार्किंग मिल गई।

पुस्तक लोकार्पण के साथ ही काव्य संध्या का भी कार्यक्रम था। जिसके लिए अन्य कवियों सहित डॉ रमा सिंह और मासूम गाजियाबादी जी भी निमंत्रित थे।

आयोजन थोड़ा विलंब से प्रारम्भ हुआ किन्तु कुशल संचालन में सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। सभी वक्ताओं ने उपन्यास की बारीकियों पर चर्चा की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि से पूर्व त्यागी जी ने अपनी कथा यात्रा के बारे में जानकारी प्रदान की। तत्पश्चात, श्री विभूति नारायण राय ने अपने महत्वपूर्ण विचार रखे।

‘पिघलती मिट्टी’ उपन्यास पर मुझे भी कुछ कहने का अवसर प्राप्त हुआ।

मैं काव्य मंच पर एक गीत भी पढ़ना चाहता था सो पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम के पश्चात भी रुका।

देर हो रही थी। क्लब के बाहर रात की कालिमा बढ़ गयी थी। रात की बारिश, ट्रैफिक की चमकदार, आँख फोडू लाइट और दिल्ली लौटने का अपरिचित रास्ता ये मुझे चिंता में डाल रहा था। वैसे भी मैं बहुधा रात की ड्राइविंग से बचता ही हूँ।

भला हो मंच संचालक डॉ चेतन आनंद और डॉ रमा सिंह का। डॉ रमा सिंह ने संचालक महोदय को मुझे जल्दी कविता पढ़वाने को कहा।

मित्रों मैंने एक गीत पढ़ा “जानते हैं हम तुम भी, ज़िंदगी ये फ़ानी है। हसरतों की उल्फ़त की छोटी सी कहानी है॥”

मंच को धन्यवाद किया, श्रोताओं को धन्यवाद किया। श्री रवीद्र कान्त त्यागी जी को धन्यवाद किया और हाथ हिलाता हुआ क्लब के सभागार से बाहर निकल आया।

बाहर रात मुंह बाए खड़ी थी। मेरी कार के ठीक पीछे किसी ने कार खड़ी कर दी थी। कार नहीं निकल सकती थी। कुछ देर मैं इधर-उधर देखता रहा, अचानक कार वाले सज्जन आ गए। उन्होंने कार हटाई। मैंने कार निकाली मगर एक समस्या विकराल थी कि मुझे दिल्ली वापस लौटने का रास्ता नहीं मालूम था और मुझे गूगल का सहारा लेना भी नहीं आता था।

वर्षा फिर प्रारम्भ हो गई थी। ट्रैफिक के वाहनों की भयानक चमक वाली लाइट, तेज वर्षा में कार का वाइपर और आगे अपरिचित रास्ता। जगह-जगह सड़क के किनारे शराब पीरहे लोगों ने मेरी बहुत मदद की और मुझे गाजीपुर बॉर्डर तक पहुंचा दिया।

यहाँ से, मैं रास्ते से परिचित था। फिर भी उस रात बारिश में चूक हो गई और कार निज़ामुद्दीन पुल से यमुना पार कर गई।

वहाँ से वापस लौटा, अक्षरधाम से होते हुए रात पौने नौ बजे घर पहुंचा।

वज़न नियंत्रित रखने के चक्कर में मैं दिन में भोजन से बचता हूँ। रात मात्र दो चपाती और ढेर सारी दाल-सब्ज़ी और सलाद की अपेक्षा रखता हूँ।

श्री रवीन्द्र कान्त त्यागी जी के इन दोनों उपन्यासों के बाद इनका एक अन्य उपन्यास ‘पतन’ शीघ्र ही प्रभात प्रकाशन से आ रहा है, ऐसी सूचना उन्होंने मंच से साझा की।

श्री रवीन्द्र कान्त त्यागी जी को अशेष शुभकामनायें…..

सुधेन्दु ओझा

9868108713/7701960982

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