दूध में धुले

धन्य हैं हमारे देश की वे सभी राजनीतिक पार्टियां जो चुनाव के दौरान उनलोगों को अपना प्रत्याशी चुनती हैं जिनकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि होती है। इसे कहते हैं लोकतंत्र में समाजवाद। किसी से कोई बैर-भाव नहीं। सब अपने भाई-बंधु हैं। अपने तो अपने होते हैं, वे दुश्मनों को भी गले लगा लेते हैं। वह पार्टी ही क्या जिसमें इस प्रकार का उदारवाद न हो। राजनीतिक पार्टियों में शामिल होते ही हर शख्स का लौकिक, पारलौकिक और आध्यात्मिक ज्ञान उस ऊंचाई को छू लेता है जहां कोई अपराधी हो या निरपराधी किसी से मतभेद नहीं रह जाता। वे ईश्वरतुल्य समदर्शी हो जाते हैं। वैसे भी कमोबेश किसी में अपराध के अंश हों तो वह किसी राजनीतिक पार्टी में जाते ही धुल जाते हैं। लिहाजा किसी को अपने पापों, दुष्कर्मों और अपराधों का प्रायश्चित करना हो तो उन्हें गंगा नहाने की आवश्यकता नहीं। अब यह पवित्र कार्य राजनीतिक पार्टियां करती हैं। इसमें शामिल होते ही सभी विकार भस्मीभूत हो जाते हैं। यही कारण है कि हर आपराधिक पृष्ठभूमि के झंडाबरदार किसी न किसी राजनीतिक दल में शामिल होने के लिए कसमसाते रहते हैं। पार्टी में गोता लगाए बिना मुक्ति नहीं। गुनाह गिन के मैं क्यूं अपने दिल को छोटा करूं, सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं।

यह नितांत सत्य है कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के हृदय में भी कहीं-न-कहीं एक नरम कोना होता है जिसमें अच्छाई की हिलोरें उछालें मारती रहती हैं। बस उसे पूरी तरह तटबंध तोड़कर बाहर निकालने की आवश्यकता होती है। हमारे संत-महात्मा कई सदियों से ऐसा पुण्य करते आ रहे हैं। ऐतिहासिक और पौराणिक ग्रंथों में भी ऐसे कई दुर्जनों का उल्लेख मिलता है जो पहले आपराधिक कृत्यों में लिप्त थे, वे कालांतर में महामानवों में परिणत हो गए। आधुनिक काल में यह क्रांतिकारी कार्य राजनीतिक पार्टियां कर रही हैं। उनके पास ऐसी प्रयोगशालाएं हैं जहां से अपराधी अपराधमुक्त होकर अवतरित होते हैं।

जनता भी अब इस बात को भलीभांति जान चुकी है। अतः वो भी दरियादिली दिखाते हुए ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान कर चुनावों में उन्हें भारी मतों से विजयी बनाती है। इनमें से कुछ तत्वदर्शी सज्जन ऐसे होते हैं जो ये मानते हैं कि एक अपराधी को जीताकर उसे नेक और ईमानदार बनने का अवसर अवश्य देना चाहिए जबकि अन्य कुछ लोग यह पूर्णतः स्वीकार कर चुके होते हैं कि यह जमाना ही बाहुबलियों का है। अपने क्षेत्र में एक बाहुबली पाल लेने में हर्ज ही क्या है? इससे जनता अपने आप को सुरक्षित महसूस करने लगती है। ये बाहुबली भविष्य में उनके बहुत काम आ सकता है। यों भी आजकल का जमाना आपराधिक प्रवृत्ति वालों का ही है। समझदार, ईमानदार और आदर्शवादी लोगों की सोच निम्न स्तर और पुराने जमाने की होती है। ये समाज के ऐसे नासमझ प्राणी होते हैं जो न स्वयं कुछ खाते हैं और न किसी को कुछ खाने देते हैं। आज बिना खाये कोई एक दिन भी जीवित रह सकता है भला?

वैसे भी जब तक आरोप सिद्ध नहीं हो जाता किसी को अपराधी कहना उचित नहीं। इस धरा पर कौन नहीं है गुनाहगार? मोहम्मद अल्वी फरमाते हैं – देखा तो सब के सर पर गुनाहों का बोझ था, खुश थे तमाम नेकियां दरिया में डाल कर।

रतन चंद ‘रत्नेश’

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