प्रिय पाठकगण,
नववर्ष 2023 की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
विगत दिनों फेसबुक पर एक सज्जन की पोस्ट पढ़ी जो कुछ इस प्रकार थी :
“इतवार, 18 दिसंबर की दोपहर प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के सभागार में ‘परिकथा’ के सौवें अंक का लोकार्पण हुआ। हिन्दी लघुपत्रिका के इतिहास में ‘पहल’ और ‘प्रगतिशील वसुधा’ के बाद सौ अंक पूरे करने वाली ‘परिकथा’ एकमात्र पत्रिका है ।”
कुएं के मेंढक को कुआं ही महासागर प्रतीत होता है।
अन्यथा “हिन्दी लघुपत्रिका के इतिहास में ‘पहल’ और ‘प्रगतिशील वसुधा’ के बाद सौ अंक पूरे करने वाली ‘परिकथा’ एकमात्र पत्रिका है ।” इस प्रकार के वाक्य से बचा जा सकता था।
अंत में लिखते हैं “लघुपत्रिका आंदोलन के अतीत और वर्तमान में उसकी ज़रूरत पर कुछ बातें मैंने भी रखीं । कार्यक्रम की तस्वीरों के साथ-साथ सौवें अंक में प्रकाशित अपनी कविताएँ भी साझा कर रहा हूँ।“
हिन्दी पट्टी के ये महंत खुद को फणीश्वर समझ बैठते हैं जहां ये छप रहे होते हैं वह पत्रिकाएँ ऐतिहासिक होती हैं, अन्य गौण।
खैर, मेरा मानना है कि इसमें कुछ हद तक दोष हम जैसी पत्रिकाओं का भी जो अपना गाल नहीं बजातीं।
आजकल का युग गाल बजा-बजा कर अपना प्रचार करने का है। हम इस युग में बस आत्म-प्रचार से और अर्थ-दोहन से बचते रहे।
संपर्क भाषा भारती को वर्ष 1990 से अपने वेतन के पैसों से निकालते रहे।
एकाध बार वार्षिक सदस्य बना कर पत्रिका संचालित करने का प्रयास किया तो सरकारी डाक की वितरण की अनियमितता से परेशानी हुई। पत्रिका गंतव्य तक नहीं पहुंची तो कूरियर कर के भेजनी पड़ी।
या तो हम अपना धन लगा कर पत्रिका निकालते या फिर साल में एकाध अंक निकाल कर भव्य भोज-युक्त आयोजन करते। तब शायद पत्रिका के बारे में चर्चा होती।
पर हमने पत्रिका के प्रकाशन पर अधिक ध्यान दिया।
अब से यह अवश्य कर दिया है, पत्रिका का प्रकाशन वर्ष और अंक बड़े अक्षरों में आवरण पृष्ठ पर छापना शुरू कर दिया है।
खैर, 28 दिसंबर की शाम साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के सभागार में लेखिका रेनू अंशुल (रेनू अग्रवाल) कहानियों की किताब ‘पॉकेट में इश्क़’ (कहानी संग्रह) का लोकार्पण संपन्न हुआ। जो प्रलेक मुंबई से प्रकाशित हुई है। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा को करनी थी लेकिन किसी कारणवश वो नहीं आ सकीं।
कार्यक्रम में मित्र वरिष्ठ कथाकार व आलोचक महेश दर्पण, लघुकथा विशेषज्ञ बलराम अग्रवाल, सुभाष अखिल, राजकमल से मुलाक़ात हुई। साहित्यकार अलका सिन्हा से भी मुलाकात हुई। किसी श्रोता ने लिखा है कि “संपर्क भाषा भारती के संपादक सुधेंदु ओझा जी का संबोधन लाजवाब रहा।”
एक बार पुनः, जाते हुए वर्ष 2022 को विनम्र प्रणाम और धन्यवाद कि उसने हमें ऐसा अवसर प्रदान किया कि हम नए वर्ष का उगता हुआ विहान देख सकें और अपनी ऊंचाइयों के क्षितिज को तय कर सकें।
आप सब के परिवार में ईश्वर आशुतोष! समृद्धि स्वास्थ्य का अक्षुण्ण भंडारण करें आपकी मनोकामनाओं को पूर्ण करें और नव-वर्ष 2023 आपकी उपलब्धियों को नए शिखर प्रदान करे, यही शुभ कामना है।
संपर्क भाषा भारती पत्रिका के सभी सहयोगी साहित्यकारों और पाठकों का विशेष आभार जिन्हों ने इसे अपने स्नेह से सिंचित रखा।
सादर,
सुधेन्दु ओझा