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दिल्ली की मेयर


दिल्ली में एक घोड़ी इन दिनों बहुत परेशान है। गांधी की समाधि राजघाट के पास मैंने उसे एक कोने में मायूस देखा

मुझसे उसका उदास चेहरा नहीं देखा गया और उसकी इस उदासी का कारण पूछा तो कहने लगी- ‘एक कृश्न चंदर थे जिन्होंने एक गदहे की आत्मकथा लिखी और गदहों पर कई पन्ने काले किए, परंतु आज के जमाने में कोई किसी को नहीं पूछता।

मैं गदहों से लाख दर्जे अच्छी हूं और यह भी ख्वाहिश नहीं पाल रखी है कि आप जैसा हमारी फिक्र करनेवाला मुझ पर लिखे। आपने मुझसे बात की, यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। इससे पहले कि वह अपना दुखड़ा सुनाती, भूमिका बांधने के लिए कृश्न चंदर की गधे का कहा सुनाने लगी- ‘दिल्ली में आने वालों को याद रखना चाहिए कि दिल्ली में प्रवेश करने के बहुत से दरवाजे हैं। दिल्ली दरवाजा, अजमेरी दरवाजा, तुर्कमान दरवाजा इत्यादि। परंतु दिल्ली में आप इनमें से किसी दरवाजे के भीतर से अंदर नहीं आ सकते क्योंकि इन दरवाजों के भीतर प्रायः गायें, भैंसें, बैल बैठे रहते हैं या फिर पुलिसवाले चारपाइयां बिछाए ऊंघते रहते हैं।

हां, इन दरवाजों के दायें-बायें बहुत-सी सड़कें बनी हुई हैं जिन पर चलकर आप दिल्ली में प्रवेश कर सकते हैं।’ मैंने घोड़ी को बीच में ही टोक दिया- ‘यह तुम पुराने जमाने की दिल्ली का भूगोल क्यों ले बैठी हो। वह गदहे की दिल्ली थी, अब यह तुम्हारी दिल्ली है। इसमें प्रवेश करने के लिए रास्ते ही रास्ते हैं। तुम अपनी सुनाओ, चेहरा क्यों लटका रखा है?’ टोकने पर उसने कहना शुरू किया- ‘दरअसल बात यह है कि दो महीने हो गए कोई मुझ पर सवार होने को तैयार नहीं है। कोई दूल्हा मुझ पर बैठे तो सही।

अंग्रेजी में ही मुझे मेयर कहा जाता है। मैं दिल्ली भर में अकेली मेयर हूं। मेरी दस-बीस बहनें होतीं तो कोई टंटा ही नहीं था। एमसीडी में चुनकर आए लोग दूल्हा बनने के लिए आपस में लड़े जा रहे हैं। कहते हैं इसके लिए वोटिंग होगी और जिसे चुना जाएगा वही दूल्हा बनेगा। क्या जमाना आ गया है, दुल्हन एक है और दूल्हे ढेर सारे। इसी से मैं हमेशा अपने ऊपर सवार हर दूल्हे से यह कहना नहीं भूलती कि तुम्हारे घर में बेटी हुई तो उसकी रक्षा करना।

आगे चलकर इस तरह लड़ना नहीं पड़ेगा।’ मैंने घोड़ी को दिलासा देते हुए कहा, ‘घबराओ मत, दिल्ली की असली मेयर तुम ही रहोगी। बाकी आते-जाते रहेंगे। इस बार दूल्हे के चुनाव में इसलिए देर हो रही है कि जो जनता द्वारा चुने नहीं गए उनसे भी वोट दिलाने की कोशिश हो रही थी जो जीते हुओं को मंजूर नहीं और ऐसा ही अब सुप्रीम कोर्ट से फैसला भी आ गया है।’
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– रतन चंद ‘रत्नेश’