हृदय परिवर्तन जैसा शब्द इतिहास के पन्नों में तो बहुत बार दर्ज मिलेगा। जाने कितने उदाहरण मिल जाएंगे परंतु आज के समाज में , आज के परिवेश में ये शायद संभव नहीं है। छोटे स्तर पर तो शायद हो भी जाय पर बड़े स्तर पर बिल्कुल असंभव सा लगता है। किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि युग परिवर्तन के लिए हृदय परिवर्तन आवश्यक है।
कलिंग का ऐतिहासिक युद्ध और सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन इस संदर्भ में बहुत ही महत्वपूर्ण उदाहरण है। प्रारंभिक कक्षा में इस युद्ध के बारे में पढ़ा था। बाद में भी कहीं ना कहीं पत्र पत्रिकाओं में इसके बारे में पढ़ा है।
लगभग 261 ईशा पूर्व सम्राट अशोक और कलिंग के राजा के बीच बहुत ही बड़ा और यादगार युद्ध हुआ था। लगभग पूरे भारत पर विजय पाने के बाद सिर्फ कलिंग ही बचा था जहां सम्राट अशोक का शासन नही था। ये बात उसे बहुत अखरती थी। दक्षिण की कई राज्यों का रास्ता कलिंग से होकर ही था इसलिए राज्य विस्तार के लिए भी कलिंग पर विजय पाना आवश्यक था। कलिंग का तत्कालीन राजा बहुत ही बहादुर था। सैन्य शक्ति बहुत ही मजबूत थी। सम्राट अशोक के दादा चंद्रगुप्त मौर्य और पिता बिंदुसार ने भी कलिंग पर विजय पाने की कोशिश की थी परंतु असफल रहे थे। अशोक के कलिंग पर आक्रमण का एक कारण यह भी था।
दोनो सेनाओं के बीच बहुत बड़ा युद्ध हुआ। कलिंग का युद्ध इतिहास के सबसे बड़े युद्धों में से एक है। इस युद्ध में सम्राट अशोक की विजय हुई। लेकिन विजय प्राप्त करने के बाद इतने लोगों का शव और भयानक तबाही देखकर अशोक का मन विचलित हो गया। भयानक युद्ध में लगभग एक लाख लोग मारे गए और इससे भी ज्यादा लोग जख्मी हुए। युद्ध भूमि के भयानक दृश्य ने सम्राट अशोक के हृदय को बहुत ही प्रभावित किया और चिंतन करने के लिए प्रेरित किया कि मानवता क्या है। उसके मन में आया कि मात्र एक राज्य पर विजय पाने के लिए मैने युद्ध लड़ा और इतने लोगों की जानें गईं। घायल लोगों में भी कितने बचेंगे कितने नही , क्या मालूम। इतनी तबाही और बर्बादी हुई। उसके मन में एक अपराध बोध घर कर गया। उसको इन सबका बहुत पछतावा हुआ। वो इतने लोगों की मृत्यु और तबाही का मुख्य कारण स्वयं को समझने लगा और कुछ हद तक वो था भी।
कलिंग युद्ध में हुई क्षति तथा नरसंहार से उनका मन युद्ध से उब गया और वह अपने कृत्य को लेकर व्यथित हो उठा। कलिंग युद्ध ने सम्राट अशोक के हृदय में महान परिवर्तन कर दिया। उनका हृदय मानवता के प्रति दया और करुणा से उद्वेलित हो गया। उसका हृदय परिवर्तन हुआ और वो सब कुछ छोड़ कर सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चल पड़ा। इसी शोक से उबरने के लिए वह बुद्ध के उपदेशों के करीब आता गया और अंत में उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। बौद्ध स्वीकारने के बाद उन्होंने उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी किया।
सम्राट अशोक का एक ही मकसद था इस सब जगह शांति कायम करना शांति ही एक माध्यम है जिससे लोगों की जिंदगी आसान हो सके सम्राट अशोक को महान शासकों में शुमार किया जाता है. सम्राट अशोक को सम्राट महान के नाम से भी जाना जाता है।
इतना सब कुछ सम्राट अशोक के लिए भी बहुत आसान नहीं रहा होगा। इतने बड़े सम्राट के लिए सब कुछ त्याग देना कोई सामान्य बात नही है। हृदय में कितने अंतर्द्वंद से सामना हुआ होगा। कितने विचार आए होंगे, ये सब कल्पना से परे है। एक बहादुर राजा और महान सम्राट युद्ध नही लड़ेगा, राज्य विस्तार के लिए तो युद्ध आवश्यक है लेकिन जब हृदय परिवर्तन हो गया तो फिर हो गया। अब सब कुछ मिथ्या था।
( ब्रजेश श्रीवास्तव )