अपना नहीं समझना गगन, बेचना नहीं
सरहद नहीं बनाना, पवन बेचना नहीं
होगी ख़लिश मगर यहाँ दुश्मन नहीं कोई
तो भूलकर भी तुम ये वतन बेचना नहीं
दीवारो-दर से रिश्ता तो होता है, दोस्तो!
झूठी मगर हो शान तो तन बेचना नहीं
बैठा हो घुटने टेक, पसीने में इक ग़रीब
दे देना उसको मुफ़्त, क़फ़न बेचना नहीं
फूलों पे तितलियाँ हों, हों शाख़ों पे पत्तियाँ
ख़ुदगर्ज़ियों में ऐसा चमन बेचना नहीं
‘पूनम’ तुम्हारी बातें, यहाँ कौन समझेगा
लिख लेना डायरी में, ये फ़न बेचना नहीं