पंजाब के उग्रपंथी समर्थक किसानों, वामपंथी/अराजक संगठनों/पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के जाटों का (किसान) आंदोलन अब पूरी तरह जाट वर्चस्व की लड़ाई में बदल गया है

मुझे यह लिखते हुए जरा भी संकोच नहीं है कि, चरम पंथी लेफ्ट के कोआर्डिनेशन में शुरू किया गया तथाकथित किसान आंदोलन कई समूहों के घृणित लक्ष्य का परिणाम है। यह पंजाब के उग्रपंथी समर्थक किसानों, वामपंथी/अराजक संगठनों/पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के जाटों का (किसान) आंदोलन अब पूरी तरह पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में अपने वर्चस्व की लड़ाई में बदल गया है।

• पंजाब के उग्रपंथी :

पाकिस्तान द्वारा समर्थित खालिस्तानी चरम पंथी तत्व जो कि पहले से ही आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा समर्थित थे। इस आंदोलन में खुले रूप में मुखर और शामिल हुए हैं। योगेंद्र यादव, जो कि आप से निकाले जाने से पूर्व पंजाब में आप पार्टी के उग्र-पंथियों के समर्थन से परिचित थे को इस आंदोलन में अपनी स्वराज पार्टी को स्थापित करने का अवसर दिखाई दिया। आप से लतियाए गए अपने साथी प्रशांत भूषण और हरियाणा में जाट आरक्षण की मांग करने वाले समूहों को साथ रख इस आंदोलन की नींव रखी गई। दिल्ली में आप पार्टी को आभास था कि योगेंद्र की यह हरकत उसके पंजाब में वोट और प्रभाव को खत्म करने की साज़िश है, पर वह इसे खुले तौर पर स्वीकार नहीं सकते थे। परिणाम यह रहा कि पंजाब के उग्रपंथियों के वोट केलिए उन्हें भी इस आंदोलन के समर्थन में उतरना पड़ा। नर्मदा बचाओ वाली सार्वजनिक पतुरिया हर जगह नाचने को तैयार रहती है सो यहाँ भी रही। किसान संगठन की आड़ में नक्सली कार्यक्रम का प्रसारण हुआ। और भीमा-कोरे गाँव से लेकर तमाम राष्ट्र-द्रोही अभियुक्तों को छुड़ाने के नारे भी लगाए गए।

• असंतुष्ट जाटों को मोहरा बनाया जाना :

जाट हरियाणा में लगभग एक दशक से आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे हैं। 2014 में हुड्डा जाते-जाते जाटों को 10 प्रतिशत आरक्षण दे गए थे जिसे 2014 में ही सर्वोच्च न्यायालय ने रोक दिया था। किसान आंदोलन के बहाने जाटों की इसी भावना के साथ खिलवाड़ करना प्रमुख उद्देश्य था। यहाँ यह उल्लेख भी आवश्यक है कि पंजाब भी जाट बहुल है और जाट आंदोलन अपने प्रमुख विरोध की शुरुआत अमृतसर से ही करता है। 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली की साज़िश : खूनी होली खेलने का षड्यंत्र :तथाकथित अर्बन नक्सल योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, मेधा पाटकर के मुखौटे में भारत का झण्डा लेकर शांति गीत गाते हुए रैली में कुछ समय आगे बने रहे। उसके बाद उन्होंने यह कमान चरमपंथियों के हाथ में सौंप दी। फिर वही हुआ जो होना था। राजधानी में हिंसा का तांडव हुआ। तथाकथित शांतिदूत नेपथ्य में जाकर छुप गए। विषम परिस्थितियों के बीच केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस ने अभूतपूर्व संयम का प्रदर्शन किया। खुद लहूलुहान हुए किन्तु चरमपंथियों पर प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई नहीं हुई। हालांकि इन अर्बन नक्सलियों का यह लक्ष्य था कि पुलिस बल का प्रयोग करे। गोलियां चलें और प्रदर्शनकारी मारे जाएँ। पर ऐसा नहीं हुआ। एक प्रदर्शनकारी अपने ही ट्रैक्टर के पलटने से वीरगति को प्राप्त हुआ जिसे कई तथाकथित पत्रकारों ने पुलिस गोली से मारा गया घोषित कर दिया। इसी की अंतिम अरदास प्रियंका वाड्रा रामपुर जाकर पढ़ आई।

• सरकार से वार्ता नहीं : बिल को निरस्त करने की मांग :

तथाकथित अर्बन नक्सली सरकार से वार्ता के हिमायती नहीं थे वे अपने दंभ से सरकार को झुका कर दिखाना चाहते थे। उनमें से किसी ने बिल की कमियों पर चर्चा नहीं की बल्कि हाइपोथेटिकल प्रश्न खड़े किए। किसानों को डराया कि उनके खेत छीन लिए जाएंगे। देश के कई राज्यों में नकदी फसलों को कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग पर उपजाया जाता है। कपास, मूँगफली, सोयाबीन, सूर्यमुखी, गेहूं, आलू की फसलें इसमें प्रमुख हैं। किस किसान का खेत कोंट्रैक्टर ने हड़प लिया? आप को जानकारी हो तो अवश्य लिखिएगा।

• 26 जनवरी की हिंसा के बाद : जाट आंदोलन :

अर्बन नक्सलियों का 26 जनवरी का प्लान सरकार और पुलिस की बुद्धिमत्ता से धराशायी हो गया। उन्हें सरकार और पुलिस से सहयोग की उम्मीद थी। उन्हें उम्मीद थी कि पुलिस हिंसक चरमपंथियों पर गोली चलाएगी। 8-10 मौतें जरूर होंगी। मृतकों की पहचान किसानों के रूप में होगी। उनकी अन्त्येष्टि नहीं करने दी जाएगी। सरकार से करोड़ों रुपये का मुआवजा मांगा जाएगा। चरमपंथियों के आश्रितों केलिए सरकारी नौकरी मांगी जाएगी। लाशों का अंतिम संस्कार नहीं करने दिया जाएगा। देश भर में आंदोलन को गति मिलेगी।भारत पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा। कनाडा, पाकिस्तान अपनी संसदों में भारत विरोधी प्रस्ताव पास करेंगे। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार मोदी सरकार की भर्त्सना करेगी। देश में धारा 370, रामजन्मभूमि निर्णय के विरोधी, CAA विरोधी ताक़तें एक छाते के नीचे सम्मिलित होकर मोदी के किले को ध्वस्त करने का प्रयास करेंगी। और…..और, मोदी सरकार इस आंदोलन के सामने ढेर हो जाएगी। यह रणनीति लेफ्ट समर्थक अर्बन नक्सलियों की थी और है जिसमें देश के सभी अस्तित्वहीन विपक्षी दल शामिल हुए। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

अर्बन-नक्सलियों की रण-नीति का पतन : कमान जाटों का सौंपा जाना :

वैसे अर्बन नक्सलियों की यह रणनीति गहन मानवीय व्यवहार पर शोध के बाद ही तैयार हुई थी इसके असफल होने का कोई औचित्य नहीं था।

आप स्वयं 26 जनवरी के विज़ुअल्स देखिए।

किस तरह से किसानों की भावनाओं को आक्रोशित कर 26 जनवरी का दिन तय किया गया था।

किस तरह से सरकार और पुलिस की आँखों में धूल झोंकते हुए आंदोलनकारियों ने ट्रैक्टर रैली के लिए धूर्तता दिखलाते हुए पुलिस द्वारा सुझाए गए रूट को स्वीकार किया था।

किस तरह से पुलिस के साथ हुए समझौते से किनारा कर के चरमपंथियों/अपने सिपाहियों को कत्ले-आम केलिए आगे कर दिया गया था।

नक्सलियों के पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण अध्याय होता है हिंसा कराकर जन-संवेदना हासिल करना। यह सब, अर्बन नक्सलियों की रणनीति का सदैव ही अहम हिस्सा रहे हैं किन्तु दाद देनी होगी प्रशासन और पुलिस को कि उन्होंने नक्सलियों को इस रणनीति में सफल नहीं होने दिया।

अस्तु, इसके बाद किसान बिल को आप लोगों के समक्ष रख रहा हूँ। कृपया इसके दोष बताएं।मेरे पास भी 5 बीघे की खेती प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में है। नौकरी के चलते मैं दिल्ली में रहता हूँ। मजबूरन मुझे खेती बंटाई (अधिया) पर देनी पड़ती है। गाँव का ही कोई व्यक्ति मेरे खेत को आधे पर लेता है। मुझे उसे हर खर्चे (बीज, 3-4 पानी, खाद) का आधा मूल्य चुकाना पड़ता है। फसल अपने घर में रख कर वह बहाना बनाता है : इस बार फसल मौसम से मारी गई, बीज ठीक नहीं था। खाद ठीक नहीं थी। कोहरा पड़ गया, पाला गिरा, नील गाय और जंगली सूअर सब खेत खोद डाले, आपके खेत दूर हैं वहाँ के लोग बकरियाँ चरा देते हैं। जो वह कहता है उसे सच मान कर स्वीकार करना पड़ता है। कुल मिला कर यह कि जितना पैसा आधे पर लगाया गया होता है उससे 100-50 रुपये बढ़ कर मिल जाता है। इससे आय नहीं होती बल्कि यह मानसिक संतोष मिलता है कि खेत पर आपका कब्जा बना हुआ है। अब यदि मुझ जैसे किसानों को कोंट्रैक्ट फ़ार्मिंग वाले मिल जाएंगे जो मुझे वैज्ञानिक खेती पर निश्चित आय देंगे तो क्या यह मेरे लिए बुरा होगा?

खैर, आप इस बिल को पढ़िये और अपनी राय से अवश्य मुझे अवगत कराइए।राकेश टिकैत जो कांस्टेबल भी कैसे बना होगा उसकी बुद्धि पर लोग फिदा हुए जा रहे हैं। उसका यह कहना कि वह आंदोलन को अक्तूबर 2021 तक खींचेगा

इस बात को स्पष्ट करता है कि अर्बन नक्सलियों ने सत्ता-परिवर्तन की आस अभी छोड़ी नहीं है।

सादर,

सुधेन्दु ओझा9868108713/7701960982

किसान कृषि बिल 2020 हाल ही में सितम्बर माह के अंत में भारत सरकार ने तीन किसान बिल 2020 को सदन में पास करके कानून में तब्दील किया है। इन तीन kisan-bill-2020 के बारे में विस्तार से जानिए।

1. मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम (Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act),

2. और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम पर किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम (Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Act),

3. किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता (the Essential Commodities (Amendment) Act)।तीन किसान कृषि बिल 2020 मोदी सरकार द्वारा सितंबर 2020 के अंत में, कानून के रूप में अनुमोदित और अधिसूचित किए गए और राष्ट्रपति की स्वीकृति से इन तीनों बिलों को कानूनों में बदल दिया गया।

क्या है तीनों कृषि बिल भारत सरकार ने सितम्बर 2020 के अंत में जो किसानों के लिए तीन बिलों को कानून के रूप में तब्दील किया है, उन तीन विधेयकों का मतलब क्या है ?

किसान की उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020इस अधिनियम के तहत किसानों के लिए खुली मंडी का प्रावधान किया गया है जिससे किसान अब अपनी फसलों को देश के किसी भी डिस्ट्रिक्ट या फिर किसी भी स्टेट में बेच सकते हैं। इस अधिनियम के तहत किसान अपनी फसल APMC (सरकारी मंडी) से बाहर बेच सकता है और सीधे बाजार से सम्बन्ध स्थापित कर सकता है।

मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा विधेयक, 2020 का किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता

इस विधेयक को किसानों के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए बनाया गया है। इस विधेयक के तहत किसान अपनी फसल बीजने से पहले कृषि व्यवसाय फर्मों के साथ, थोक विक्रेताओं के साथ, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ, अपनी फसल का कॉन्ट्रैक्ट कर सकते है और फसल बीजने से पहले ही अपनी फसल का भाव सुनिचित कर सकते हैं।

आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020

इस अधिनियम के तहत एसेंशियल कमोडिटीज (आवश्यक वस्तुओं ) जैसे की अनाज, दाल, तिलहन, प्याज और आलू जैसी आवश्यक खाद्यान्न वस्तुओं को इस आवश्यक सूची से बाहर निकाल दिया गया है और इनके भण्डारण की सीमाओं (कुछ परिस्थितियों को छोड़कर ) से प्रतिबंध हटा दिया गया है।

किसानों की शंकाएँ तथा सरकार द्वारा दिया जाने वाला आश्वासन:

# धीरे-धीरे सरकार MSP (मिनिमम सपोर्ट प्राइस) को ख़त्म कर देगी।

MSP के साथ कोई छेड़खानी नहीं होगी। MSP पहले की तरह ही चलता रहेगा।

#निजी मंडिया खुलने से APMC ख़त्म हो जाएँगी और APMC ख़त्म हो जाएगी तो MSP भी ख़त्म हो जायेगा।

किसान के पास अब दो रस्ते होंगे, चाहे तो वह APMC में या फिर निजी मंडी में अपनी फसल बेच सकता है। और MSP ऐसे ही जारी रहेगा।

# खेती में निजी निवेश होने से निजी कंपनियां किसानों के साथ मनमानी करेंगी।

कोई भी निजी कंपनी मनमानी नहीं करेगी। सब कुछ कॉन्ट्रैक्ट के तहत ही होगा।

#निजी कम्पनिया छोटे किसानों से उनकी जमीने कब्जा लेंगी।

कॉन्ट्रैक्ट के तहत केवल फसल का कॉन्ट्रैक्ट होगा उसमे जमीन का कोई जिक्र नहीं होगा।

#निजी कंपनियां अगर वही फसल कहीं और से कम दाम पर मिलती होगी तो वो किसान के साथ धोखा कर सकती है और उसकी फसल खरीदने से आना कानि कर सकती है।

इस दौरान किसान SDM कोर्ट में जा सकता है और कोर्ट में किसान के पक्ष को प्रमुखता दी जाएगी।

#किसान को SDM लेवल की न्याय प्रणाली पर शंक है उसको लगता है की बड़ी कंपनियां अपनी ताकत के बलबूते SDM को प्रभावित कर सकती हैं और फैसला अपने पक्ष में करा सकती हैं।

सरकार इस तरह के केस को सिविल कोर्ट तक ले जाने का प्रावधान करने को तैयार है। छोटे किसानों के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग संभव नहीं है। अगर किसान अपनी कृषि प्रणाली में बदलाव नहीं करेंगे तो उनकी आय कैसे बढ़ेगी।

#बड़ी कंपनियों के पास भण्डारण की स्वतंत्रता होगी और इसके तहत वो अपनी मनमानी करेंगे और जिससे किसानों की फसलों के दाम गिर सकते हैं।

किसान अपनी फसल बेचने के लिए स्वतंत्र होगा वह वहीँ पर बेच सकता है जहाँ पर उसको दाम अधिक मिलेगा।

#किसान बिल फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य न देने की साजिस है।

किसान बिलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य से कोई लेना देना है, वह ज्यों का त्यों जारी रहेगा।

#बड़ी कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट के द्वारा किसानों का शोषण करेंगी।

कंपनियों द्वारा पहले से तय दाम ही किसान को मिलेंगे और किसान इस समझौते से कभी भी पीछे हटने के लिए स्वतंत्र है।

#किसान विधेयक से बड़ी कंपनियों को फायदा होगा और किसान को नुकसान होगा।

नए विधयेक से किसानों को नुकसान की बजाय फायदा होगा , अब वह बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर महंगी फसलों का भी उत्पादन कर पायेगा।

Krishi Bill 2020 सरकार द्वारा गिनाये जाने वाले उद्देश्य

1 सरकार इन बिलों को द्वारा छोटे और सीमांत किसानों की मदद करना चाहती है।

2 ऐसे किसान जो अपनी फसल की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए निवेश नहीं कर सकते हैं उनको इन 3 kisan-bill-2020 के तहत उनकी कृषि में निवेश की उम्मीद बढ़ जाती है।

3 यह बिल किसानों को अपनी फसल मार्किट मंडियों के बाहर भी बेचने की अनुमति देता है।

4 इन बिलों के तहत व्यापारी किसान की फसल सीधे ही किसान के खेत से भी खरीद सकता है।

5 किसान को कमीशन एजेंट और मंडी शुल्क से छुटकारा मिल सकता है।

6 किसान अपनी फसल को देश के किसी भी कोने में बेच सकता है।

7 किसान सीधे बाजार के साथ अपनी बातचीत आगे बड़ा सकता है।

8 किसान की फसल को अवरोध मुक्त अंतर् – राज्य व्यापार को बढ़ावा देना।

9 किसान अपनी फसल उगाने से पहले ही उसका पूर्व- सहमत मूल्य जान सकता है।

10 किसान अपनी फसल बेचने के लिए बिचौलिया सिस्टम को समाप्त करके सीधा व्यापारियों से जुड़ सकता है।

11 एक प्रतिस्पर्धी बाजार का माहौल बनाना और कृषि उपज का अपव्यय में कटौती करना

सरकार द्वारा गिनाये जाने वाले Kisan Bill 2020 के फायदे

• किसान अनुबंध विधेयक 2020 (Farmers Bill 2020) के द्वारा किसान बिचौलिया प्रणाली यानि आढ़तिया प्रणाली से बच सकता है।

• छोटे किसान जो महंगी खेती नहीं ऊगा सकते, इस विधेयक के तहत प्राइवेट कंपनियों से कॉन्ट्रैक्ट कर सकते है और अपनी फसल के लिए निवेश जुटा सकते हैं।

• किसान भाविष्य में मिलने वाले अपनी फसल के मूल्य जैसी शंकाओ को दूर कर सकता है और फसल उगाने से पहले ही फसल का सहमति मूल्य जान सकता है।

• किसान अपने क्षेत्र के आलावा देश के किसी भाग में अपनी फसल को बेच सकता है जहाँ पर उसको फसल के दाम अधिक मिल रहे होंगे।

• किसान मंडी में लगने वाले शुल्क से बच सकता है।

• किसान के पास अपनी फसल को बेचने के दोनों रस्ते होंगे वो चाहे तो APMC मंडी में या फिर डायरेक्ट व्यापारी को भी बेच सकता है।

• बड़ी निजी कंपनियों, निर्यातकों, थोक विक्रेताओं के बाजार में आ जाने से पर्तिस्पर्धा बढ़ेगी और पर्तिस्पर्धा बढ़ने से किसान को ज्यादा मुनाफा मिलेगा।

• मूल्य स्थिरता आने से किसानों तथा उपभोक्ताओ दोनों को मदद मिलेगी।

• इन बिलों से कृषि क्षेत्र में निजी निवेश या FDI को बढ़ावा मिलेगा।

• ये बिल किसानों के लिए नए विकल्प उपलब्ध कराएंगे।

• किसान की उपज बेचने पर लगने वाली लगत को कम कराएंगे।

तीन नए कृषि बिल (Kisan Bill 2020) क्या हैं? व क्यों कर रहे हैं किसान आंदोलन?

सितम्बर 2020 के अंत में सरकार द्वारा तीन कृषि बिलों का कानून के रूप दिया गया है। सरकार का मानना है की ये kisan-bill-2020 किसानों की आय बढ़ाने में कारगर साबित होंगे।

भाजपा सरकार जब दूसरी बार सत्ता में आई थी तो 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का उनका चुनावी नारा था। और ये kisan-bill-2020 भी इस चुनावी नारे को साकार करने के लिए एक पहल है।

इसके आलावा भी सरकार PM किसान सम्मान निधि जैसी योजनाएं ले कर आई।जैसे की इन तीनो बिलों के बारे में ऊपर हम अपने लेख में बता चुके हैं, फिर भी मोटा-मोटा इन बिलों के बारे में बताते हैं।

सरकार ने किसानों के लिए APMC (Agriculture Product Market Committee) के साथ साथ एक सामानांतर मंडी खड़ी करने का प्रावधान किया है।

किसानों के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के दरवाजे खोले हैं। निजी कंपनियों को कुछ (हालत को छोड़कर) जरूरो खाद्य पदार्थो के भण्डारण से रोक हटा ली है।

कुछ किसानों और किसान यूनियनों को लगता है की ये किसान बिल किसानों के हित में नहीं है। सबसे पहले पंजाब राज्य से इन किसान बिलों का विरोध शुरू हुआ था और धीरे धीरे ये विरोध जोर पकड़ता गया।

पंजाब राज्य में इन बिलों के विरोध में धरने और प्रदर्शन निकाले गए और धीरे धीरे इन बिलों का विरोध करने वाले लोगो की तादात बढ़ती गई। सबसे पहले पंजाब से किसानों ने इन बिलों का विरोध प्रदर्शन करने के लिए पंजाब से दिल्ली की तरफ कूच किया, रास्ते में हरियाणा सरकार ने इन्हे मनाने या फिर रोकने की पुरजोर कोशिश की लेकिन किसानों ने किसी की नहीं सुनी और दिल्ली की तरफ कूच जारी रहा।

इस बीच हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी इस आंदोलन में शामिल होते गए। धीरे-धीरे अन्य राज्य के किसान भी इस आंदोलन में शामिल होते गए।

इस बीच सरकार ने भी इस आंदोलन को खत्म करवाने का प्रयास किया है। कई दौर की बातचीत किसानों और सरकार के बीच में हुई है लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है।सरकार ने इन तीनो कृषि बिलों में शंशोदन करने की भी पेशकस की है लेकिन आन्दोलनकर्ता किसानों की मांग केवल इन तीनो कृषि बिलों को रद्द करने की और MSP को गारंटी एक नया कानून बनाने की रही है।

Kisan-bill-2020 का विरोध करने वाली किसान यूनियन और राजनैतिक दालकिसान बिल के विरोध में किसान यूनियनों के साथ साथ लगभग सभी विपक्षी पार्टियां भी इस आंदोलन में कूद पड़ी है।जब से किसानों ने इस आंदोलन को तीव्रता दी है तब से किसान आंदोलनकारियों और भारत सरकार के बीच लगभग 11 दौर की वार्तालाप हो चुकी है लेकिन अभी तक इसका कोई नतीजा नहीं निकला है।

इस आंदोलन में विभिन किसान यूनियनों ने भाग लिया है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :

किसान मजदूर संघर्ष समिति, भारती किसान यूनियन-एकता उग्रहा, भारतीय किसान यूनियन, क्रांतिकारी भारतीय किसान यूनियन लक्खोवाल, क्रांतिकारी किसान यूनियन, भारतीय किसान यूनियन डकोंजा, भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर, भारतीय किसान यूनियन राजेवाल, भारतीय किसान यूनियन कादियान, कीर्ति किसान यूनियन, भारतीय किसान यूनियन दोआब, किसान संघर्ष समिति, जम्हूरी किसान सभा, भारतीय किसान यूनियन मन, ऑल इंडिया किसान सभा पंजाब, पंजाब किसान यूनियन, भारतीय किसान यूनियन मान, भारतीय किसान यूनियन गुरनाम, आजाद किसान संघर्ष कमेटी, राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ, भारतीय राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन, भारतीय किसान यूनियन अंबावत, राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ, भारतीय राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन, ऑल इंडिया जाट महासभा

इन सभी किसान यूनियनों के साथ साथ कुछ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनितिक पार्टियां भी इस आंदोलन में कूद पड़ी है जिनमे से कांग्रेस, आम आदमी , समाजवादी पार्टी, अकाली दल और तृणमूल कांग्रेस जैसे दल है।

इस आंदोलन में किसानों के साथ साथ APMC (Agriculture Product Market Committee) के कमीशन एजेंट भी हैं क्योंकि इन तीनो बिलों के आने से APMC के कमीशन एजेंटो की आमदनी पर फर्क पड़ने वाला है। किसान आंदोलन से संबंद्धित-Agriculture Bill 2020 or kisan Bill 2020 को निरस्त करने की मांग को लेकर प्रदर्शनकारी किसान अड़े रहे।

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