Category: लघुकथा

  • दूध में धुले

    दूध में धुले

    धन्य हैं हमारे देश की वे सभी राजनीतिक पार्टियां जो चुनाव के दौरान उनलोगों को अपना प्रत्याशी चुनती हैं जिनकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि होती है। इसे कहते हैं लोकतंत्र में समाजवाद। किसी से कोई बैर-भाव नहीं। सब अपने भाई-बंधु हैं। अपने तो अपने होते हैं, वे दुश्मनों को भी गले लगा लेते हैं। वह पार्टी…

  • जाल

    जाल

    लघुकथाजाल में मछली शाम को दफ्तर से निकलने में आज फिर देर हो गई। घर तक पहुंचने में घंटा भर और लग जाना था। वह पैदल बस—स्टॉपेज की ओर बढ़ रही थी कि भूख सताने लगी। पर क्या खाए वह? विवशता में खाने की इच्छाओं तक का दमन करना पड़ रहा था। सामाजिक बंधनों में…

  • अश्वत्थामा

    अश्वत्थामा

    अश्वत्थामा – लघुकथा तुमने हताशा में अपने बचाव के लिये ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके संसार को संकट में डाल दिया। इस पर मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं अश्वत्थामा! लेकिन मैं आश्चर्यचकित हूँ कि एक महान ज्ञानी पिता के पुत्र होते हुए भी तुमने, सोये हुए पाँडव पुत्रों की हत्या; जैसा घृणित कार्य किया। तुम जैसे…

  • ना जाने कौन सी खिड़की खुली थी : दुख की अनुभूति

    ना जाने कौन सी खिड़की खुली थी : दुख की अनुभूति

    अमूमन सुबह थोडी जल्दी नींद खुल जाती है पर उस दिन छुट्टी थी इसलिये सुबह थोडी देर से सोकर उठे। बालकनी मे आये तो देखा आसमान मे काले बादल छाये थे और बहुत अच्छी हवा भी चल रही थी। हल्की बरसात के आसार थे। मौसम बहुत ही खुशनुमा था तो सोचा छत पर चलकर मौसम…

  • गुलेल सेना

    गुलेल सेना

    एक दौर था या यूँ कहें कि एक समय था जब पूरा भारत अंग्रेजों के आधीन था। क्या गांव क्या शहर हर जगह लोग अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार से त्रस्त थे। सम्पूर्ण भारत मे जगह जगह अंग्रेजी हुकूमत के विरोध मे धरना , प्रदर्शन , आन्दोलन , सत्याग्रह आदि जोरों पर था। तमाम स्वतंत्रता संग्राम…

  • सौ रुपये का नोट : एक लघु संस्मरण

    सौ रुपये का नोट : एक लघु संस्मरण

    कोई खोई हुई या रास्ते मे गिर गयी अपनी किसी चीज को खोजा जाय और वो वापस मिल जाय तो एक सुखद अनुभूति होती है। ये बात कुछ विशेष मायने नही रखती कि उसका मूल्य क्या है। आज शाम को कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ। शाम के समय एक घरेलू सामान की आवश्यकता पडी…