Category: व्यंग्य
-
दिल्ली की मेयर
दिल्ली में एक घोड़ी इन दिनों बहुत परेशान है। गांधी की समाधि राजघाट के पास मैंने उसे एक कोने में मायूस देखा। मुझसे उसका उदास चेहरा नहीं देखा गया और उसकी इस उदासी का कारण पूछा तो कहने लगी- ‘एक कृश्न चंदर थे जिन्होंने एक गदहे की आत्मकथा लिखी और गदहों पर कई पन्ने काले…
-
दूध में धुले
धन्य हैं हमारे देश की वे सभी राजनीतिक पार्टियां जो चुनाव के दौरान उनलोगों को अपना प्रत्याशी चुनती हैं जिनकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि होती है। इसे कहते हैं लोकतंत्र में समाजवाद। किसी से कोई बैर-भाव नहीं। सब अपने भाई-बंधु हैं। अपने तो अपने होते हैं, वे दुश्मनों को भी गले लगा लेते हैं। वह पार्टी…
-
-
भुखमरी में अव्वल
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक भूख सूचकांक यानी कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी हुआ है जिसमें भारत की स्थिति पिछले वर्ष की तुलना में और भी अधिक बिगड़ी है। हमारे लिए इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होनी चाहिए। जिस देश में खा-पीकर अघाए लोग भी भूखे हों, वहां का यह आंकड़ा चिंताजनक…
-
गधे का भ्रम
कुछ सुनी सुनाई कथाओं के बारे में पता नही होता कि उसे सर्व प्रथम किसने कहीं या किसने लिखी। वो यूं ही मौखिक रूप से प्रचलित हो जाती हैं। प्रस्तुत है ऐसी ही एक सुनी सुनाई कथा अपने शब्दों में…. एक गांव में एक आदमी के पास कुछ गधे थे। वो पूरा दिन उनसे काम…
-
तो क्यों धन संचय?
हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी ,“पूत कपूत तो क्यों धन संचयपूत सपूत तो क्यों धन संचय” जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का उपदेश दिया है लोगों ने इस वाक्य को आई ओपनर की संज्ञा दी है ।लोग बाग़ ये अनुमान लगा रहे हैं कि…
-
मन का रावण
हा, तुम्हारी मृदुल इच्छाहाय मेरी कटु अनिच्छाथा बहुत माँगा ना तुमने,किंतु वह भी दे ना पाया।था मैंने तुम्हे रुलाया,, ये एक तसल्ली भरा सन्देश है उन लोगों की तरफ से जिन्होंने इस बार मन के रावण को पुष्पित -पल्लवित नहीं होने दिया ।इस बार का दशहरा बहुत फीका फीका रहा।,फेसबुक के कॉलेज से ग्रेजुएट और…
-
दशानन की महिमा
रावण जलता है और पूरे देश में हर साल जगह-जगह जलता है। पिछले एक-दो साल कोरोना के कारण गिनती में बहुत कम रावण जल पाए क्योंकि हम सब रावण से भी बड़े एक शत्रु को जलाने में व्यस्त रहे जो गिनती में असंख्य थे। पिछली कसर इस बार पूरी हो जाएगी, ऐसी उम्मीद है। इस…
-
चाटुकारिता परमो धर्म
चमचागिरी या चाटुकारिता का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव-सभ्यता का। यहां तक कि चमचों का उल्लेख अन्य नामों से वेद और पुराणों में भी मिलता है। पूर्वकालिक चमचों में कलात्मक गुणों का प्राचुर्य था और तत्सम्बंधी विनम्र श्रद्धा भी। फलस्वरूप इसका लाभ हर पक्ष को मिलता था, पर कालांतर में इस कला का…
-
आजाद होने की तड़प
देश की आजादी के 75 साल हो गए परंतु हमारे नेता आज भी आजाद होने को तड़फ रहे हैं। वे जिस पार्टी में रहते हैं, कुछ दिनों बाद ही वहां गुलामी महसूस होने लगती है। आजाद होने के सबके अपने-अपने तर्क हैं। अतः गुलामी से मुक्त होकर या तो वे पार्टी बदल लेते हैं या…