Tag: रिश्तों के अवमूल्यन पर आधारित एक रचना
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रिश्ते
अपने ही कंधों पर अपनी लाश लिए मैं चलता हूँरिश्ते सारे मिथ्या हैं,मृत हैं,नित जलता हूँ,चलता हूँ। अग्नि कौन देगा यह चिंता,हे राम तुम्हारे कंधे परजपकर प्रतिपल नाम देश का,कर्म भूमि तक बढ़ता हूँ। राजनीति रिश्तों की प्रतिपल,सबको ही तड़पाती हैएक छत के नीचे हृदयहीन,मज्जा,अस्थिकलपाती है। सब के सब रिश्ते वैकल्पिक,रक्तपिपासु सब के सबअच्छा है…