अपना नहीं समझना गगन, बेचना नहीं सरहद नहीं बनाना, पवन बेचना नहीं होगी ख़लिश मगर यहाँ दुश्मन नहीं कोई तो भूलकर भी तुम ये वतन बेचना नहीं दीवारो-दर से रिश्ता तो होता है, दोस्तो! झूठी मगर हो शान तो तन बेचना नहीं बैठा हो घुटने टेक, पसीने में इक ग़रीब दे देना उसको मुफ़्त, क़फ़न…